________________
बाई श्रजितमती एवं उसके समकालीन कवि
तत्त्व पदार्थ श्री जिनवाणी | सांभली भाव सहीत सुखखारणी 11 कुंभरनि बेसाडी तिज ठाय ||१८||
दीक्षा लेवानों चीतू उपाय
चन्द्रमती का श्रागमन
ती अक्सरे चन्द्रमती माय । श्रावती देखी हूं लागो पाय ।। दक्षण भाग सिंधारिण बैठी । प्रासीस दीयि मुझ देखी संतुदी ॥ १el
जीव नंदन मुझ वीर काल मंगल नित नित होउ बिसाल 11 जयजयो मुज पराक्रमें पूरो। तुम रक्षा करो जगतो सुरो ||२०|| चन्द्र सम सोम्य तुझ जय करो बंद । मंगल नित नित करो भानंद || बुध विबुधपती करो त रक्षा सुरगुरुशुक्र दीयो शुभ सिक्षा ॥ २१ ॥ राहु मर्नचर पीडा निवारो । केतु कल्याण सदा विस्तारो || हरीहर ब्रह्मादीक सहू देव । दीयो आयुष्य धरणां तुझ देव ||२२||
खडग ताहारो अरी भए मदहारी । जयो जयो राज प्रजा सुखकारी ॥ राज साहार' जयो सिंधु मर्याद । तूं चिरजीवो मुझ श्रासीर्वाद ॥ २३॥
दोहा
दीक्षा लेया उपायने, वितथ वचन विस्तार || माय श्रगल में बोल | माय वचन श्रवधार ॥ १ ॥
यशोधर द्वारा रात्रि स्वप्न का मरन
त जे प्रायु धरण कहा, किहां थी माधु विसाल || रातें सपन में पेखयू, राक्षस एक विकराल ॥२॥ हाथ त्रिशूल बीहामणों, बोल्यो करकस वार || कुटंब सहीत तुझ क्षय करू, वचन का दुख खास ॥३॥ दीक्षा लीपिजो जीन सरणी, तुमकू जा जीवंत || सेह भरणी दीक्षा लेवसू, किम मुझ प्रयु महंत ॥४॥
चन्द्रमती द्वारा बेवी पूजन
चंद्रमती सब बोल देवी कोपी पुत्र ||
▸
विधन उच्च ए घटता, सपन देखादि विचित्र || ५ ||
चंडी चामुंडा कही, मुंड मथनी वली जोय ॥ काली कात्यायनी सही कुल देवी ता सोम ॥६॥
*