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यशोधर राम
पूर दिस कोई कांई होई पीली । रवि श्रावि माट पीठी करें भोली ॥ तारा बीण पण थया जागे। उद्यम हीन राय पेर वखाणे ||५||
विर घिर दीवा कोई नव्य सोहि । नीर्घन गुण जिम जन तथ्य मोहि || बिर बिर काम कतूहल जीता। ऊं जागरथा दीवा सीस डोलंता ॥६॥ सूर प्रथमे तो खल घं सोम्या । रवि न फरे पवनें व ओम्या " वाजे विविध वाजिन रसाल । तेहि जाभ्यो वली परभात काल ||७||
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प्रबल बीरुद मुझ बालि बंदीयण । गीत गंभीर गुण गावये गायण || बार बोध्यां माता हाथीया डोलि । मद लोभी भमरा मला बोलि ॥८||
माय पिरपिर हम रह्या हींसि । क्षार सकल ग्रागल पडघा दीसे || सूर ऊग्यो जाणे कुंकुम रोल पूरव दिसि घाटडीरंग बोल ||६||
अथवा उदयगीरी रातुं छत्र पाकू दाडिम फल नाणे विचित्र || गिरिवरं वानरा लेवा धाय । ग्रहण हाकतो दुःखीयो थाय ॥१०॥
वेगना पील्यो पूज्यो गिरिठो । उदयगिरि रवि राय बईठी || रातां किरण करो सिरसू प्रषार सींदूर लेखना घेत राया पो तार ।। ११।।
रांडी सिरसिया सम लेखें । लोक फोकि कु कु करचो देखि ॥। रोडा एम मंडन ए करती । कुडुन कुठु किम नहीं व्यभिचरती ।। १२ ।।
सूर ऊगि परिए दुर्जन अंधा पण अवगुण बोल वातरणा बंधां ।। दान पूजा धर्म सुजनें कराम । इम ऊग्यो रवी जाणीयो राय ।।१३।
प्रातःकालीन क्रियायें
उठी जिन गुण चिंतन की। नौयो त्रीयि दंतधावन कर दोषू ॥ मंगल स्नान आदि श्राचार। मुकुट प्रादि कीघोसणगार || १४ ||
सके सरगार सू मावीय नारि । अमृता देखी कमल मूवयोय वारी ।। कमलषाय भोधि पडी विचीत्र । जुषतु असंभम नारी चरित्र || १५ |
मने बोललो पण भेद न दाखू । दीक्षा तणं, मन केहेन न भालू ।। मंगल तिलक मानयि वधाव्यो। राज मंडीत सभा माहिंहूं याच्यो ।। १६ ।।
यशोधर का राजसभा में बैठना
रयण संघास बैठो तेणी बार राय राणा मंत्री की जूहार । जैन ऊपाध्यायनि दीय मान । बेसी भासने तब की आख्यान ॥ १७॥