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यशोधर रास
नारी वाघरा वष वषती हो, नारी अशुचौ नीषान || नारी प्रत्यक्ष राक्षसी हो, ग्रसती मन तनु वात ||होजी०।३३७।। नारी पापन पोलो हो, नारी लोभन पुज ।। मारी नामि व्यंतरी हो, खाती नरनि मुज होजी०॥३८।।
नारी प्रन्या देषी करी, कोप उपनु अपार ||
ए बेहूनि हविहू हणं , है यि एहवं विचार ।।१।। रामा द्वारा ललवार निकालना और पुनः शान्त होना
खलंग काढयो पडी प्रारयो, वली बीनार मन लीन ।। मा अपला अवध कहीं, ए कुबड़ो भृत दीन ।।२।। एह हण्यो मझ ऊपज सहसि, काई न सीझ सि काज ।। खडग साबमू वली जोइ, मारिदत्त सणो राज ॥३॥
मास नरसूनानी सग के गुण
सब खडगह गुरुल चीतव । नारे समारण प्रांगण बीकराल || अरी दल मलि प्रती पर ए 1 जाणीइ कोप्पो काल ।।१।। रणभेरी रणकाहल ए ना। वाजि जब रण तुर ।। तव मम हाथि उलसती एमा। जाणे रोमांच्यो सुर ॥२॥ वापस तोरंगम काय वेगी ।ना। चपल साधकई अपार ।। सनाहि हूँ जाणे मेघलो एनाof खडग वीज झनकार ।।३।। रूग ए जाणे तीरप ए ना धारा बहु नीर ठाहि ।। द्विजनि देता धन तनू कापी ना। परि हरि हरि करी नाहि ॥४॥1 खतम जाणे राह समुए माग कालो तेह वीकराल । मुक्ष्यो अलि बेरी तणं ए। मा राजमंडल ततकाल III खडग जाणे सही मेघलो ए नाot पारामल वरसाय || भीना बीना वली नाहा मता एना) राजहंस कोतरे जाय ॥६॥ खग जाणे जम जीभडी ए ना। लल लस लांबी होय ॥ मोटा कुटा लोंटा देरीडाए नाग सुभटां चाटली जोय ||७|| प्रताय वैश्वानर वगए ना खडगए मोटी पास ॥ हूँ सूरसही परी इम कही ए ना। धीज काणि चाटि ऊदास ।।