SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०३ बाई मजीतमप्ती एवं उसके समकालीन कवि जागणे उज्ज्वल रे, पूज दोसि कपूर नो ॥ छे समरथ रे, ताप निवारवा सूर नो । २०|| पूरय दिसे रे, ए नारी मुझ प्रक्षाणं करे ॥ समी श्रीफलरे, नक्षत्र तारा तंदुस धरे ॥२१॥ पूरच दसि रे, गुफा थको ए नीसरी ।। गगन बनें रे, संचरयो शशी केसरी ॥२२॥ किरण नखे रे, अंधकार गज विदारयो ।। जाणे तारा रे, मुक्ताफल विस्तारयो ॥२३॥ उग्यु चांदतु रे, अवनीयि बाणे गारुडी । काम सापने रे, जगावि कीरणे लाकडी ॥२४॥ अथवा ससि रे, जाणे नीसाणा नोखंडडो । बांगा छूटडारे, धसिए काम पुलंदडो ॥२५।। शशी सीतल रे, अमृत मय कहिवाडतो । लांछन मसिरें, हर दो काम गलती ॥२६॥ देखी व्यरहणी रे, संताप पामी प्रतधणी । चन्द्रप्रति रे, कहिया लागी सेह भरणी ॥२७॥ पासी सोतल रे, बाह सकल ए किहो हती । केहर गले रे, विस्वतणी हवि संगती ॥२८।। सायर माहि रे, घडवानल श्री मौस्त्रीयो । तू कलंकीय रे, दोखाकर जड लेखीयो ॥२६॥ तूं कुमुदनी रे, साथि खेलि मन रली । गोल आलोपि रे, परस्त्रीनि छके चली ॥३०॥ मसासरे रे, अमृत पीतां पतिबिंब नु । हूं नालज रे, परनारी मुख, चंचनु ।।३१।। सायर मधीरे, फोकें देवि ऊपाइयो ।। छई खोषण रे, सायर कुल तिल जावीयो ॥३२॥ मंदर तसि रे, सिहिजिसि नहीं चंपाइयो । अगस्त तशी रे, मजलीसि न पीवाईयो ॥३३॥
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy