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________________ यशोधर रास बिन अंतरे रे, रवि घणं मान पामयू। उत्तम नरे, कोणि एक सीस न नामयू ॥६॥ व्यभचारिणी रे, ममन रो रीसि बढी । रखी उपरे रे, देषाडि प्रांखि राती ॥७॥ जाणे तेहस्यारे, सूरज प्रस्तोगत गयो। अनला तणि रे, स्वा कोहोनो नही क्षय थयो । जेह उवय थोरे, धर्म कर्म चाले घणो। तेह प्राय रे, जाणे वोषा काल तणो ॥६॥ रवि मायमेरे, कोमलागी धरणी पदमनी । देषी नव्यसकिरे, प्रांख मीची रही परणी ।।१०।1 निज मीत्रनो रे, दुःख देखी अती दुर्घरो। दुखीयो पाय रे, कोरा नही ते उपरो ॥११॥ रवि साथमें रे, कमल माहि भमरो रमि । सही कामनी रे, निचसू संग करिसिमि ॥१२॥ कमल तणी रे, सोभा तव क्षय पामीई । जिम व्यसनी रे, विद्या सरीखी वामई ।।१३।। ममे भमरा रे, दीन या विलखे घणं । जिम विदांस रे, कुजन मांहिं पामे दीन पणां ॥१४॥ अंधकार ए रे, लोकनि पीडि पापीयो। जिम कुस्थिती रे, भूप घणं लोभि व्यापीयो ॥१शा सह लोकनारे, नयन तदा नीफसा होवां ।। जिम कृपणनाए, जनम बली धन सांचवा ॥१६॥ सय दीवी रे, ठाम ठाम घणं प्रगट ई ।। अंधकारनी रे, व्याप्त ते वारें विघटई ॥१७॥ जिम जिनवाणी रे, ज्ञान कीरणि करी व्यापती॥ घर करी रे, मिथ्या तीमरनि का पती ॥१॥ चन्द्रोदय बर्शन तीगि अवसर रे, अग्यो पूनम चांदलो ।। पूरव दिसा रे, नारी सिर जाणे बांदलो ॥१॥
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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