SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 225
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बाई अजीतमसि एवं उसके समकालीन कवि . . जाने कनक तणी पूतली ए मा। पासली मोहए वेल ।।सु०॥ मसार सुख माहि भूलू एमाजेएह सूकर गेस !सु०॥२६॥ गमनागमन बेगि करिए 1मा। अस्थए अमृता कटाक्ष ।सु। क्षणविनय घोडा थीर होइए 1मा०। अमृता केरा प्रभिलाख ॥सु०॥२७॥ वाटला कोमल पीरोजडा ए मा०] धोडा अमृता थण साध सु०॥ रतन मोती परवालडाए मा०। अमृता वीना एकाच ||सु०॥२८॥ माता मेंगल मोटका ए मा एमझ मन न सोहाय ।सु। अमृता बीना एम लेख ए ॥मा। दर दाया गीरी ठाय ।सु०।२९ रथ जाणे एगै हिटीया एमाग रारकरि प्रती कर सु०।। रथ रोध मझ मन भम्पू ए मा०। अमृता मती रिहि रुध ।सु०॥३०॥ अनेक राणा राय देशसू एमा। मंडार सहीत ए राज ।मु० ममृतमती नारी विणए ।मा०। एणि मझसू सरि काज ।।सु०॥३१॥ बहर अंगी पिरि चीता प्राकुल्यो, सांकलपो जिम नाग ! अंतर मदें नयन तरें, पण उठवा नहीं लाग ।।१।। तेरिण अवसिरि दिनकर सही, लोक बधिय इम जाण ।। प्रस्ताचल सन्मुख ययो, जाएं मुझ करुणा प्रारण ॥२॥ मास भूपाल रागनी सूर्य प्रस्त होने का वर्णन दिनकर रे आश्रमतृ हवो रातडो॥ निशि नारी नु रे, जाणं कि कुकुम चोलहो ||१|| जिम प्राथमतो रे, तिम ते घणं रागे चढ्यो । सही महाजन रे, रंगनमूकि कष्ट पडयो ।।शा यम ऊगतो रे, तिम प्रायमतु रंग भरघु ।। सहि सज्जन रे, मन सुख दुःखे सममुख करयो ।। ३॥ प्रस्ताचलें रे, सूर मावतो जाणीयो। निज सिर परि रे, मुकुट समो वायो ।।४।। पश्चिम दिसि रे, रवी माबि हवी रातडी । । पंखी तरणा रे, बोल मसि करे चानडी ।।५। ।
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy