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________________ ई अजीतगति एवं उसके समकालीन कवि विरह अंधारि दुःखीयो । चक्रवाक सपूर ।। अमृतमती नाम मन रली, चीत हूँ गुण गूर ॥११॥ मास महालतानो अमृतमतीना गुणधरणार : महालतहे। षीतबू प्रतीही बरवारण । सुरण सुन्दरे ॥ बिरहायण भण उपसमिए । मा। हृदय वसीयिम बाण । सु. ||१|| चरणों कमलपणं जी कीयाए । मा । लाजी याकी उजलि वास ।सु०॥ मजबली गमनें जीकीयो ए । मा० । तेह वनें रह्यो उदास ||मु०॥२।। घूटण विरह हणवे भलाए । मा० । बंधा कनकमय भ ।। सु० ॥ जघन जाणे करी कर सोभा एमा०।। जीके रंभा प्रदंभ |सु॥२।। अमृतमतो सौन्दर्य वर्णन कटालके जीत्यो सिंह लोए ।मा। लाप्रो गयो बन ठाय ।।४।। पोढा परभान पामीयाए मा०। दूर देसांतर जाय ।।।।४|| ऋष्यवली उदार सोहिए 1मा०। रोमावली बन जागा ।। सु।। मयण मातंग जम जुवाए ।मा० नाभी ए रह वखागा सु०॥५॥ कनक कलस जाणे ऊपताए ।मा। अमृत भरया हम जोय । सु०।। पीन स्तन मुखे मेव कस |मा० जाणे मुद्रा दीधी होम सु०.६॥ अथवा पयोधर घणं सोहिए ।मा। रपे लागि एह नि दृष्ट ।सु०। इम जारणी फरयो मिस लांछन एमा०। चतुर विधाता घृष्ट ।सु०१७।। अथवा कनक कलस परि एमाग1 नील उत्तपल सोहंत सूका कमल छोड़ा अथ स्तन भए ।मा। उपरि भमर मोहंत ।मु०॥८॥ चकवा चकवी जोडलूए मा। एहना स्तन रसाल ||सु०॥ मुख चंद्र देखी भय तजीए मान जारणे रोमावली सेवाल ।सुपर।। अथवा हृदय सिव शंकर ए मा चंदन बचित जाण ।।सूना स्तन उपरि जे स्यामीकाण ।मा। सुउपरि कल्हार बखारण ।मु०१।१०।।
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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