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________________ बशोधर राम मल्लयुद्ध क्षण एक जोउए । मत्त मतंग जूद्ध तू ।। मीढा महीष झूमता जीऊए । ते अद्धि छि प्रती क ष सु ।।२७॥ इम करता लतृहल । गण मंडीत सभा माहि तु ।। कलपतरु चिंतामणीए । कामधेनु मऊ चाहि तु ॥२८॥ दान देखी सहू लाजीए । अदृशयां इम जाण तु ।। सारद चन्द्र कुमुद समुए। यश विस्तरयो वपारण तु ।२।। बा विरह वर्णन तेणि प्रयसिरि मुझ मांभरी, अमृतमती मुवीचार | रूपयौवन गुण देह तरणा, जीतु रुदय मझार ॥१॥ वोरह ज्याप्यो मुझ अती घरगो। क्षरण एक रहण न जाय ।। अमृतमती गुण अमृत सू', रह्मो हु चित्त लगाय ।।२।। विरह संताप व्याप, मझ कोमल अतीकाय ।। अमृतमती गुपचन्द्रका ए। रहयो हृदय लगाय ॥३॥ विरहतणी घणी वेदना, तब उपनी मुझ देह ।। अमृतमत्ती गुण बड़ा, रसांग रस पिर रथ्यो सनेह ।।४।। विरह तण अति दुःसहू। हृदय पिइट साल ।। अमृतमती गुण शस्त्रधर, बैद्यनि घांठ विसाल 1101 वीरह दावानल ननुवले, लागो अति विकराल ।। अमृतमती मेघ पयोधर तदा, घ्यांऊ प्रती ही रसाल ।।६।। विरह तृषायि व्यापीयु. यापीडु अपार ।। अमृतमती गुण चीत जाणे जन्मघर धार ।।७।। विरहा. मातो मतंग जो, तनु पाटण गंजेय ।। अमृतमती गुण प्रकुसि, चितधरवी गंजेय ।।८।। विरह मुजंगम मुझ नडयो, वेयर वीवह ज्याप ।। अमृतमती नू मनकरू', नाम मंत्र तणु जाप्प ||६|| वीरही दीछी बिर्ख व्यापयो, मझ शरीर मझार ॥ अमतमती गुण ऊषधी, घरी करू सीतकार ॥१०॥
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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