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________________ १६६ यशोधर रास तब तेरणयि तेसू बाऊन, अवसर जोई रमेय || मारीदस अवधारतू, हूँ नवि ल हुए भेय ॥११।। मास रासनी राजा यशोधर का राज दरबार दिन दिन प्रति राजपाल तो।।करतां पर उपकार तो।। प्रजालोक ने सुली करए । होह मुझ यश विस्तार तो।।१।। एक समि सभा मंडगिए । मध्य उन्नत भद्रपीठ तो ।। उज्वल रतन नो सोभतु ए । जागणे निज पण दीठ तो ।।२।। परवालाना थंभ मला ए। मंडप प्रती विसाल तु ॥ फरती विचित्र धणं, पूतलीए । मंडी नाटक मालि तु ॥३॥ तेह परि कनक सिंघासन ए । पंचवरण मणी बद्ध तो ।। प्रमूलक मूडा गादी मला ए। रचना प्रतिहि प्रमिङ तु ॥४॥ सेरिण अवसरिहू प्रावीयो ए । सभा मंडप मझार तु ।। सामंत मंत्री रठी नम्या ए । विनय सू करय गुहार तु ॥५॥ सिंहासन बिठी सोहीयो ए । यम उदयाचल मूर तु ।। रतन कुण्डल तेजि करीए । कोषु तिमर प्रती दूर तु ।।६।। उलबद्ध घणा राजीया ए । उभा रहा तेणी वार तु ।। यथायोग्यमि संभालीमा ए । ते जिरण कीर्घा जुहार तु || बेहनि बिसवा प्राणाहती ए। ते विठा सुविचार तु॥ अनेक राणा उभा रहया ए। कर जोड़ी तजी हथिप्रार तु ॥८॥ नयण बलावि को नहीं ए। को नहीं चालि हाथ तु ।। को नही अांगली चालधि ए । वात न करि कोय साथ तु || को माहोमाहि मव्य हसिए । नभ्य करि कोय संकेत तु ।। चरण चलावि को नहीं ए । को नहीं प्रठींगण देय तु ।।१०।। सोस हलावि कु नही ए। को नहीं सीस वोम तु । कर कंपावय को नहीं ए । आंगली कोय न गणेय तु ॥११॥ को कटका मोडि नहीं ए । को जंभाई न देय तु ॥ को स्वांसि खंखारें नहीं ए । को नहीं दे को नहीं लेय तु ॥१२॥
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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