SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बाई अजीतमति एवं उसके समकालीन कवि १६३ ऊती सुडा तरणी श्रेणी । सुजेगि बोलत रसाल ।। पर वाली वचि नीलमरिण । बसंत तणी कंठमाल ॥३२॥ अखोड बदाम बीजोरडी । जंबीरडी जंबू नाम ।। नाग के सर नारंग | लबंग एलची तणो ठाम ।।३३॥ मालीकरी करणा एम | दाडम रही छिन मेव ।। तुकी किरनि करमदी। भरम हरम सगो देय ॥३४॥ मंडप तोहा द्राक्षा तरणी । अतीघरणा छि गम्भीर ।। नागवेल नवरंग । सोरंग सोपारी थोर ।।३।। फण सफल्या भरला तकी । जातकी चारू चारोली । खेलिय राय सूरंग भरी । अतेडरी करि रोल ।।३६।। अनुरकी केसर सपा परी अलि अपार । मुठडी भरीय गुलालनी। लालना मुख परि सार 1। ३७।। अबीरी नाखती नयन पुरी। रस भरी हससी नरसाल ।। गलती कमल करीहूं हणे । स्तन कपरि गुणमाल ॥३८॥ फूलझी हणि कलधरी । ललीकरी पडि मूमे चंग ।। बलि ऊठी अंगि पालंगि । रंगि रमि उसंग ।।३।। दोए कर धरी दोए ऊचली। हंसली समी सोहंत ।। तूबी सूजाणे वेणा वल्लवी । वल्लभ मन मोहंत ॥४॥ एक करें पीडी भोयि पडी । पातली भीडी बाथ ।। चंपारणी अचेतन रही । मुख कहिमो मो नाथ ॥४१॥ एक अपरि घण संडीयि | मंडी रही क्रूर वृष्टि ।। एक पयोधरि पीडीय । छेडी नापि करि रूट ||४२॥ वेणी घरी एक रीसि कहि । रहि रहि मण तथा चोर। अहो प्रबला तनु कोमल । कमल समीन निटोर ।।४३॥ वनक्रीड़ा काज भमती। रमती जाणे वनदेव ।। वेल वेलिहिडी झबती, झूबका चूटीय लेव ।।४।।
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy