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________________ १६२ यशोधर रास खेलवा चाल्या मसि ! घसमसि सह नर नारि ॥ हार गमिण तूलिए ' मामाश नार ! वगधीय सगर वगरी ठीय । हेठी नव्य लेय ॥ कही भमरी कहीं सांकलां । मेखलां छूटी पडिय ।।१९॥ बहटा सेरी मणि भरी । पहिरी जाणे भम नारि ।। नौज स्वामी ने नरखेए । हरखी करि सरगगार ॥२०॥ राए ऊद्यान जब धीठो । मीठु होइ पंखी नाद ।। जाणी राय देखी भावतो। भावतु वन करि साद ॥२१॥ केसूअडा फूल्या रातडा । रातम अशोक मपार ।। मांया मांजरे मोरीमा । मोरीया कुद मंदार ।।२२।। पीला फूल्पा रुडा चंपक । नीप कदंब अतूल ।। पाउल परीमल अबसर । पसरि पगार प्रमूलः ।।२३।। बसन्त बहार परीमल बैध्यो जायनें । जाइ नहीं अलीपुर ।। रातडी पण सासु बने । सूजनी पिरित्यजय भूर ।।२४।। जूखडी जूई वखाणए । जारिगए केतकी चंग ॥ मयण गज वंतूसल । उज्जल केबष्टु रंग ।।२५।। मधुक फुल्या फूली माषबी। बांधवी अली रह्यो श्रण है रूपि रूडी रूप मंजरी। मंजरी छि बहतेण ।।२६।। पारजातक रुडी रेवती । संवती सोहि गुलाल | कमल भलांवली करम । रकरि ममर रसाल ।।२७॥ घकूल छि परीमल गाउ । महउ मोगर मंच ।। टगर अवंती सींदुरीयो । छे बपोरीयो बहरंग ।।२।। वलसरी वालो वसंत । दीसंत मनोहर रूप ।। भमर भर्मि जारणे किंकर । तर पर सेवि नृप ।।२६।। प्रांबां बन बहु मंजरी। पिजरी दीसि चंग ।। कोयल करि टहूंकडा । दूकडी कूजि सुचंग ॥३०॥ तर पर ताल तमाल रस । लिही ताल अपार ।। रायण रातडा एवडा । सूमडा सेवि विधार !॥३१॥
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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