SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८८ यशोधर रास राजा यशोष द्वारा चिन्तन मिवली पणो रषयो प्रारंभ, बिचारी जूहहोयि प्राचंभ । कुभ भरघ. पापि प्रापणो ए ॥२३॥ कुटंब काजि राज विस्तार कोध, तनु गोले दीटी मंकोडा दीध । लीध कुगत दुःख में घपो ए ||२४|1 मेघ पटल सम र परिवार, विघंटता नवि लागे वार । गवार फोकि जीव मोह करिए ।।२।। भव पनि फालि सह वीकराल, मुख पड़या जाणें जीव मग बाल, सबल सरण ते कुण राखेए ।।२६।। समुद्र मध्ये वाहाणथी ऊघो सूहो, सरणि तेइनि जिम को नहीं हो । जीवडो कष्ट पड़पो धर्म राखिए ।॥२७॥ द्रव्य क्षेत्र भव्य भावनि काल, पंचप्रकार संसार विशाल ! काल अनंतो जीव दुःख सहिए ॥२८॥ घोहुगत माहि जीव एकलु भमिए, सुख दुःख काल एकलोनी गमिए । समय एक साधे को नहीए ॥२६॥ करम कलंक काया यको भिन्न, ज्ञान स्वरूपी आत्मा छि मन । मनोपन तेजनो पूजलोए ॥३०॥ मसुची रुषोर मांस में देह, हाड मरयू कर्म बांडाल गेह । नेह तेह सू न्यानी किम करिए ।३१।।
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy