SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 211
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बाई ग्रजीतमती एवं उसके समकालीन कवि १८७ नवौवन सेषि दूध साकर करी, वृधनि त्यजि गूगल क्वाथह परी । परी कामनी एहवी कही ए ॥१३॥ वृधनी नारने दीवी सरखी, स्नेह सींचे करि जाले हरखी। पण पर पुरुषनि ऊपगरिए ॥१४॥ धोलानी माला केसरालो ऋद्ध, जनवनि भमि केसरी समो वृक्ष, क्रिम धीरे नारी हरण लीए ॥१५॥ अथवा प्रवनी गनि ए वृद्ध भमि क प जारिणए गृद्ध । परबा वीहि नारी हसलीए ॥१६॥ प्रवनी नदी वृध मगरनी वास, वांकी डाद सौर ऊम्जवस मास । पासि न प्रावि नारी माछली ए ।।१७।। हाथें लाकडी वलयो वृध दांको, नीची नजर भमतो घf थाको । यौवन रतन नीहालतो ए ॥१८॥ वृधि हाथ धरा जे लाडी, अचेतन थी परणहीडि ना हाठी। पाठिन स्त्री केम चेतन ए ॥१६।। वृष देह कर पली बली रह्यो, लावण्य रस परनालि बयो। ग्रहयो जाणे जरा साकिनी ए ॥२०॥ नयन झरि मुख लाला गलए, लोभ विस्खय वाद्यो वल बल ए। करय तृष्णा कल माहि खयो ए ॥२१॥ वृष हाथ वली सीस पणावि, जाणि जम तेडि पणनावि । हविक्षण एकरहो इम कहिए ।।२२।।
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy