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________________ यशोधर राम जाणे अथवा जरा ए राक्षसी, तनू समसान माहां प्रावी वसी, हसीत बांत समी लेखीयए ।।३।। देह तलावरोमानली झाइ, काल पीसाचि जाणे नार्हाड, वाडव कामर्ने धारवाए ||४|| सरीर दीसि जाणे मोटो वड़ए, अनेक रोग पंक्षी प्राछिनड । बडवाई समा दीसोयि ए ॥५॥ सरीर जारणे सायर सरीखो, रोग मगर दुःख लेहेरी परीयो । संख सीपोनी फीण भलूए॥६| जाणे देह ए मोटी वाडी, पली हाड तीहां मूक् ऊभाडी । वीहाडया भोग सीनालने ए॥७॥ मारणे जरा प्रषवा ए वेल, सरीर वृक्ष पामी करे मेल । कील तंतु सम एह भणो ए ||८|| रूप लावण्य ए थान्य प्रसीधो, विषय इंदि जाणे लूहूसी लीनो। कीधी दगए परालनो ए HIT अथवा जरा रूपिणी ए नारी, परस्त्री रत पर कोपी भारी । केमधरी दांत पाइती ए ॥१०॥ काला केसते प्रधार घोर, कुटि पाडि बीखया चोर । सूर बरा उद्योत मला ए ॥११॥ जुहू गरदु धणं होय रसाल, वांछतु दौसि बिखराल, चांडाल तलाव परिस्त्री त्यजिए ॥१२।।
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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