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________________ चाई अजितमती एवं उसके समकालीन कवि १५५ मानीया राय पण पूजीयाए 1 राय राणी लज स्थानकि गया ए । एणी पिरि राज हूँ पामीयोए । राजा जसोष तणो भार वामीयोए । ३१॥ राज जसोध ते नीर्मलो, राज पालि गुगामाल 11 सल्य रहीत ते जिन तणो, धर्म करे सुवीसाल 1॥१॥ षट कर्मह श्रावकतणां, पालिते मन शुद्ध । मुमकित पालि निरमलु, भव्य तरणी ए बुध्य ।।२।। जसोध राय एक समि, विठो सभा रसाल । परी सिमुख जोमंता, दीठो पल्यो मोपाल ॥३॥ मन जीनाभि, तटरको निरस्त ॥ काल तणी स्थिति छि असी, करय विचार सुजुत ||४|| नमः प्राचार्या: परमेष्ठिनः सुतपसो निस्यादृतावश्यकाः । पंधाचारविचारचारुचतुरा: सद्भक्तसौरच्यप्रदाः ।। सद्धर्मामृतमहर्षकरणा वाक्कायश्चित्तावृताः श्रीदेवेद्रसुविक्रमस्सुतपदाः कवतु को मंगल: ।।१॥ इति श्रीयशोधर महाराजचरिते रासचूडामणों काव्यप्रतिछदेः ।। भूदेवकवि विक्रम सुत देवेन्द्र विरचिते । यशोषराज वर्णन यशोधर विवाह पूर्वक राज्याभिषेक वर्णनो नाम तृतीयोधिकारः ।।३।। चतुर्थ अधिकार ढाल भद्रबाहुनी वृद्धावस्था का प्रभाव राय भलिए पली शिकूडी । जाणे यम तणीए दूडी। बोडी मावीए तेउवाए ॥१॥ अथवा यौवन वन घणं, रहयो, काल महानल वेगि दहयो। रयो भसमनो हग जसो ए ॥२॥
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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