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________________ १७४ यशोधर रास एक यमती सापि छोकरा । कृत्यरथ बसगाई भारिण || विहिलांजमो जोईयि भूमूमा पंपू मालती बोलि वाण ॥३७|| एक मेलंती पाछरू । कसा बांधीऊ ठाम ॥ दोहीसू पछि कही बालती । वाथरु नू सरयू तक काम ॥३८॥ एफ राघती राधण। लूण घण घाली धान मांहि || दाल वधारी प्रलूणी । सलूणी बेगि पर चाहि ।। ३६।। एक प्रीसती भरतारने । वारनि भिखारिनि प्रावि ।। भारी नास्ती पर जोवती । सही भरनि मने भावि ।।४।। मेडी जोचि सवे पदमनी । घसमसी सास भरंत ।। ममर भमि मुख परीमलि । कमलनी शोभा धरंत ॥४१॥ मरद मोगरो मालती । माहालती लाजा वषादि ।। जय जय वारणी उच्चरें। जिहां बर मारगि मावि ॥४२॥ एणी पिर फूलि काहोयि । जूयिकोद्धि देवी देवी । नसोधर राजा भुत परणीह । वरणना कोरिंग कहेवी ॥४॥ व्हा इत्यादिक उछर घणा, नित नित जमणवार ।। मागरण अननें देवतां, बोटीत वान उदार ।।१।। जान सजाई होइ घण ह्य गय रथ सुविसाल | पाला पार न पामीइ, पालखी बहू गुणमाल ।, २॥ मास भूलनी हाथी बहु सरगगारपां । कनक साकलि पण भारचा ।। घंटा तणी टणकार | घूघर मालाना धमकार ।।१।। अंबाडी कडी वीसि । रतन कंवल सोहि जीसि ।। सौंदरें रंग्या सीसें । मोती जाली मनहींसि ।।२।। अंबाडी घज लहिके करी । कान वद बिहिके करि ।। सिहा भमरा झणकार । अकुस सहीतकुतार ।।३।। भनेक कुभर तीहां विष्ठा । रू रमणी भन पिइया ।। चमर सोहे गज कति । दंतूसल सीत वाने ||४||
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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