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________________ आई अजीमति एवं उसके समकालीन कवि प्रजन गिरि जाएंगें चालता । भारि धरणी हालतां ॥ मलपता महीअल माहोलि | ऊंची सूढ हूलालि ॥५॥ प्राजाय घोडा जाति बबर हबसीय भात | वानायुज छिबिनीत | वायुवेगी छिवीचीत ॥ ६॥ घोडा मरिण छि कांबोज पाणीपंथी छिपीरोज 11 पंचकल्याण पारसीक । बाहलीक बलीया कीक ॥७॥ गंगा जल गुण जाणं । ह्रासला बोर बताएं. " एह मादि श्राण्या घणा घोड़ा । सरणगारमा नहीं थोडा ॥८॥ रतन जघा हेम पलाण । पाषिलि पाषर वषां ।। हरीनां घणां कूपतडा मोती प्रवाला ना बकडा ॥६॥ मस्त्री प्रारणि मोती ललकि । लगांम चोकडे मणीभलके ।। क्षरि वेणी क्षोणी भाग । रजि रुध्यो रवि भाग ॥ १०॥ रथ रूढा वस्ति भरया । धोरोयडा धोरि जोतरया || केटला राजा बैठा रथ । जूता घोडा समरथ ।। ११ ।। अनेक राजा तीहा विइया । सुरवीर सुभट गरीअ || प्रतीष तिहां हमी प्रार । छत्र कमर के नहीं पार ॥ १२ ॥ पंचवरण लिहिकि धज्ज । चिन्ह छि जलखवाने कज || पाला धसि यह मज्ज । श्ररी श्रण भय करी भजन ।। १३ ।। पंचवरण मिहिरा वस्त्र । घरमा बहुवोध सन् ॥ एणी पिर चतुर्दोष सैग्य । राय जसोध सुधन्य ॥ १४ ॥ हस्ती उपरि । बिहू सार सांथि सद् परिवार ॥ एपी पिरि चालिए जान | मधकीयू संगल दीवान ||१५|| हस्तो उपरि बिइठुहू जाण । मारीदत्त सुरणो वारण || छत्र चमर वरणी सोभ । श्रगलि नाचिए रंभ ।। १६ ।। मम ढोल सूकि वंरी मानसाहू सुकि ॥ भो भो मंगल नाद | सराइ सुभ साद ॥ १७॥ वाली कनकमि सोहि । घरणीय सोभा मन मोहि || कटक भसमसी चाल्यो । मही कंपी सेष हाल्यो ।।१८।। १७५
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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