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________________ मशीधर रास भमर दारतां कांकरण खलके तो मि०। सारस सरस सुरगत तो । कोयल नारी शवद सुणीय तु Iभ० लाजी वचन न भरणंत तु ॥६७ चतुर नरनि नीहालती तु 1भा भरतां घट न भराय तु ।। निज अवगुण नबिलेखप्ती सोम० घट पेर रोस कराय तो ॥६८।। नारी भरी करी चालती तु ।म०।। चालती नयण विचित्र तु 11 जाणे लक्ष्मी चालती तु । चालती चतुरनों चीत्त तु ॥६॥ हसिते उत्तर बालती तु ।मका मालती कंभह जोड तो। ताली देकरि वातही तो ।भा होउनी बाहुही रोलती तु ॥७०।। सोना ऊवरण फूमती पालीतु ।म। पातली मचका मोडसी तु ।। मारन लेखती सही साहामीत ।म। वढी वार बात करि कोतु ॥७१।। पोन्म घणी कमले भरीयतु ।भा सामला रतन ना यंभ तु ॥ नीलरसन पगारीया तु । भन्। भरी छि निर्मल अंभ तो ॥७२॥ देखी नारी मुख चंद्रमां तो मिला रोदि चकधी अपार त । बियोग भय राति लेखती तो भि। श्याम किरणि अंधकार त् ७३॥ कृपि कूपि यंत्र नाटा नडा तु ।म | नीर नि फेरावि नार तु । करि चीतकार फेरा माटि तु भि। जाणे ते रौब गमार तु ।।७४|| कणु कुण नर फेरप्या मही तु 1०। नारी नयन विखपे तो ॥ कर घरया कोण नव्य फर तु !मा एछिवात संक्षेप तु ।।७।। जीहां कुत्रा कूपण गुण तु Iम०) गले पर देई धीर तु ॥ दोरें गांधी काढीयितोमा हठं करी तेह नीर तो ।।७६।। लोक माहि को हवा नहीं तो।भ०। कृपण धन संपि थाय तु ।। पौरघा स्नेहन को त्यजे तो भ० तिल पील्या स्नेह जाय तु ।।७७।। जिन त्याला तिहां घणो तो मा उल्लत सीखर यि तास सु ॥ कनक कलस धज लह लहितो ।म। बिव छि कोट रवि भास तु 11७11 सीखर पासि सिंह देसी तु ।भा चंद्रनो हरण परत तो॥ तेह माटि चंद्र नमी करी तु म। दक्षरण ऊत्तर फीरंत तो 11७१ संत सजन श्रावक भला तु भ०। नित प्रावि जिन जात्र तु ॥ सणगार सारी सवे नारी तु म) पूजी सफल करि गात्र तु I1८०|| पंचवरण ललके घण तो भल। नगरी माहि ध्वज कोड तु 11 जाणे अथीने तेडती तो । ०। नाखू दारिद्र मोद्ध तु 11८१||
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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