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________________ बाई प्रजीतमति एवं उसके समकालीन कवि एगी पिरि नगरी सोहामणी, उजेणी शुभ नाम ।। कणक रयणें .गंडार भरयां, सजन तपो विधाम ।।१।। पालि फरतां पुरां घणां, साखा नगर कही तास ।। फुलें बहोदसि चहूटहां, सुजन तणो धो वास ।। २।। भास रासनी उज्जयिनी का राजा यशोध ते नगरीनु राजीए । गाजीयो झ्याणे मुगेन्द्र तो॥ प्रबल प्रतापि मंडीयो ए । सेवी मनिक नरेंट तो ।।१।। नाम जसोष तेह जाणीथिए । क्षत्रीय वंश विज्ञात तो ॥ हस्ती हय रथ छि घणा ए । सछि अनेक बहू भोत तो ॥२॥ सामंत क्षत्री वीटीयोए । सुभट सेवंता कोउ तु । रण मोम्य जय लक्ष्मी वरपो ए । बैरीतला मान मोड़ तो ॥३॥ सोमगुरिण जाणे चन्द्रमाए । प्रताप गुरिंग बाणे सूर तो ।। चरी मद मछर वजेए । सांभलतां रण तूर तो ॥४॥ सहस्त्राप्त जांनि गुणि सही ए । क्रूर गुरिंग यम रूप तो।। धान गुणि धनपती समोए । रूपगुशि रती भूप तौ ।।५।। जाणे दश लोकपाल सरणा ए । विधाता रच्यो लेइ प्रशतो ।। देश विदेश यश विस्तरोए । सोहाव्यु क्षत्री वशतु ॥६।। लक्ष भट कोटिभटिए । परवरभो राय सोहंस तु ॥ ग्रह तागयि सोहीयो ए। जाणे चन्द्र महंत तो 11७।। रामी चन्द्रमती तस कामिनी गजगामिनीए । भाभनी कनक सुदेह तु ।। चंद्रवदिनी नामि चंद्रमती ए । रूपतणि छि रेह तु ।।८।। गोरडी सोभाग उरडी ए । घड़ी बीभातांयि नीज हाय तो॥ मेह सरोसी बीजलोए । त्रिम प्रीत छि राय साप नु ।।६।।
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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