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________________ बाई अजीतमती एवं उनके समकालीन कठि काठन पणु स्त्री स्तन विखेतो भि०। नही ते कठिण वचन तो ।। बांके भमरांछ कामोनी तो भाग बांकू नहीं तह मन तु ।। ५३॥ मंदगति छी माननी तुम०। मती मंद नही तेह तु ।। जठर कटी छि दूर्बलो तु |भ०। नीतंब द्रुषले नहीं बेह तो ।।४।। काला केश भमर समा तु 140 काला गुण नव्य होइ तु ।। नीची नाभि छिनार नीतु भला नीची रमत न क्यजोय तो ॥2 वैल प्रालंपि विटपी सूसो भाग नारी योर सून लग्ग तो ।। कुमागि जाय पंथी पशू तो ।भा नव्य नर नारी कुमग तो ॥५६॥ ननेक लोक तीहां वसित भन बन करण रयण महीत तो ।। अनेक कला कुशली कारु तो भि. बोलता बतर पंडीत तो ।।५।। वनवाडी सू सरोवर तो भि। कमल छाया भरयां नीर तो ।। पालिनी हालि कतूहली तो भला चतुर नारी गंभीर तु ।।५।। सही समाणी साहेली तु भ०। गोरडी करती नीर तु ।। सिर घट घट एक बाथ सुतो [भा पावती भरवा नीर तु ।।१६।। कनक कुभ वायु वसि तो भल। भों भौं भासय भासतो ।। सही नारी संगें रसीमा तो भला कोणनो हि विकृत नीवास तु ॥ ६॥ नारी ठवण गमन तणी तु मला उभा शून हंसराज तो।। मोतीया परवा स्पजीय तु भ० जाणे सत्य सौखवा काज तु ॥६१) पेखि पंखी शाखा बिइठा तु भि०। नारी नयण बितान तो।। फल बरते ते वीसरा त भगते सोमा लेबा धरि ध्यान तो ॥६२२॥ देखी नारी मुख चांदलो तु भा दिवसि कमल मेलाय तो ।। नारी नयरण कमलें जीवया तो भला लाजे जाणे कोमलाय तो ॥१३॥ नारी नयण चपल पणं तो।भा वली गली माछलां जोय तो।। चंसस परणं मापणं छांडीयतु म । पाय लांगतो जोय तो ।।६।। बीहीनी वोलि केटली बाला तो .म। ऊध्रसी वनम अपार तो।। सास गधे कमल त्यो तो भा भमरें बीटी तेणी वार सु,१६५।। भमर भारतां कंकण खसके तोमा सारस सरस सुरत तो ।। कोपल मारी गावद मुगीय तु (भा लाजी वचन न भयंत तु ॥६६॥
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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