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________________ यमोधर रास नाह बेठोहि मही डोलारितो।मला हीचती पबला बाल तु ।। मगती करती मामनी तो II मला मोग भोगवि रसाल लो ॥ ३८|| बूबा बंदन कस्तूरी तु ।म० पीठी परीमल पंगतो । रमत करि रती प्रामणी तु ।।भ०।। नर नारी बहु रंग तु ।।३।। को गोठ करे कर लेहेकते तो मिला जिनके घरती हाथ तो ।। नयण कटाक्ष गोरडी तो भिक। रिझवि तेह निज नाष तु ॥४॥1 बालाकते करें करी तु भा नीवी छोखंता लाजी नारि तु || रतन दीवा नव्य जलवाय तु ।भ। करे जेहू कमल प्रहार तु ।।४।। एगी पिरि भोग भोगी भला तो भ० भोगवता जाणे इन्द्र तो ।। रतन सोगटे खेलतां तो भ० । बोहोत्तर कला समुद्र तो ।।४।। बत्तीस लक्षणेऽलंकरा तो भ० नगरी तणा सह लोक तो ।। रोग शोक दोसि नहीं तु म। पुण्य तणां फल जोयतो ।।४३॥ नारी दीसि पदमनी तो भि। बोलती मधुरी वारिण' तु ॥ मुख परिमल भमरा भमितो ।म०। नयणे सलगी जाए तु ॥४४।। बौछीया सोहि रतने जदया तो भ०। झंझरनु झमकार तु || रतन मेखला कटि खलकती तु ।भ०। घूधरीनु धमकार तु ।।४५॥ चंपकली मोतीहार तु ।भ पतकड़ी जड़ी मतूल तु ।। मुम्न तंबोल प्रवर राता तो ।भण नासिका मोती अमूल तो ॥४६।। झालकाने खरी खोटली तु भिनन फली राखडी सिसफूल तु ॥ बेणी गोफणी प्राखि अपी पाली तु भ०। भमेरते काम वसूल तु ॥४७॥ कर कंकण चूड़ी रूडी तो भला बिहरषा बीटी हाथ तु ॥ घाट ऊडी चाली मलपती तो । भ० सेरीये सही पर साथ तो ॥४८॥ अगर ठाम ठाम धूपतो मिला अगुरू न बीसि लोक माहि तो।। भवीनय नही बली को दीसि तो भ० प्रविनय प्रगनी तू चाहे तो ।।४।। मवीभव नहीं को वसि तीहां तो।म०। प्रबीभव मेरवज होय तो॥ मलीतीवर कुमती नहीं तो भ०) मलीनांबर निसि जोय तो || द्वीज वृत्ति संरज नहीं तो भ०। द्विज खंडनी नारी उष्ट तो ।। वादि बढवू नहीं तु भ०। वाद वीया सही गोष्ट तो ॥५१॥ राति चोर नागनि नही तो भला नारीनां वस्त्र हरि नाह तु ॥ केली करता को जन नहीं तो मिला फंससू निसौ माहित ।।५२।।
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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