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बाई मीतमती एवं उसके समकालीन कवि
सात खणा प्रवास तु । भमाउली । राता रतन नी भात तु 11 हसी करी कहि कंस ने तो०म० साडी पिहिरवा चयू चील तु ॥२४॥ फटिक कंचोलि चंदन तिो भ। राते किरण बेघ्यू गोयती ।। कंत भागलि घरधू जगदान तो०भ०। कुकुारणीय जिसोयतो ।।२५।। नील रतन मयरुडी तो भ०॥ गोरही सणगारिक कावतो ।। नील घिरणे सामली जाणी तो० भ०। भोली वली कली पीठी लाय तो२६ फटक तणो पर भौंतरे तो०म०॥ नारी दीठी प्रतिजाय तो।। गोठ करिते गोरही तो भला सही परभरणी सेरिग डाय तो ॥२७|| रीस करिते परि तो०म०कतर नहीं दोषि काय तो॥ किरीसाणी सुझ ऊपरें । तो०भ०के कर्तेनू दुहबीमाय तो ।।२।। कहीं रातां तिन तणो तो म। उरेडि रमवा गई चाल तो ।। रात जाणी रंग रस भरी ।तो भा। वाछि कंत रसाल तो ॥२६।। पीला रतन नी तुरही।तोम०||सामली कंत प्रति जाय सो॥ परनारी करी लेखवी ।तोम०। क्षण प्रादर तो संकायतो ।।३०॥ चन्द्रकांत गोस्वरु घडा तो.भग चंद्र किरण मलि जाण तो ।। झरमर धार प्रमून झरे ।तो०म०। सारद मेघ वखारण तो ।।३१॥ फटिक गोम्बतणि जालीमि तो मा चन्द्रना किरण प्रसारतो ।। भोली भामनी लेवा मि तो०म०। जागी मोतीहार तो ॥३२॥1 हार विना पलषी हवी । तो०भ०ी हासू करि तब नाथ तो।। हार देखी वली सचिलो ।तोमा वावरि नहीं तहाँ हाय तो ।।३३।। प्रावास ऊना मेडी उलीयां तो भ०॥ ठिी चंद्रमूखी वाहि तो ।। पुण्यंम दिन ग्रहण कालि तो०भ० भूलो गगनें भमें राहतो ।।३४।। शाम ठाम चन्द्रदेषी तो भिसंसि पयो तेण ठाय तो।। संदेह थी चन्द्र सरण नो ।म क्षमा एक ग्रहण न बाय तो ॥३॥ घिर घिर गरबी गोरडी तो म0) नारी रमें सही पर साथ तो ॥ हास करें ताली दीयि तो । मिला प्रेम पोति मीटिं बाप तो ॥३६।। हीडोलि धरण हीचकितो ।म01 गावती गीत रसाल तो॥ ललिक बेणी गोफरणों तु ।म। हार लाहि किगुणमाल तो ॥३७t