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बाई अजीतमति एवं उसके समकालीन कवि
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मठ का आँगन
दीठो देवी मढ मोगरणो। माँस ढपछि ठाम ठाम ।। अजीर्णे जाणे देवी वमी ही। मास्त्री तरणा विसराम ।।१५।। रुधीर तरण। दीघा खड़ा । मढ फरती मद धार । जीव मस्तके चोक पूरया ही० । रुधीर हाथा मढ वार ।।१६।। मस्तकनी तोरण रच्याँ । जीभनी बानर वाल || पंखी पीछ पशू पूछड़ा ही काम ठामें बांध्या विकराल ॥१७॥ रायन नफरें मुगम दीयो । दीठो राय यम काल । मोकले केश कोपि भरघोही०। झबकि हाथे करवाल 1॥१८॥ राति प्राक्षि जाणे राक्षस । जाणी केर यमदूत | पख बखतो जाणे ब्यंतरो ही०। जाणे भयंकर भूत ॥१६॥ जाणे क्रोधनों पूजसो । जसो अधरमी चित्त ।।
प..लो पोतो हो नीले मागमोड ।।.i! भैरबानंद योगी
भैरवामंडपाणे भैरवो। वसमो वीर वंताल 11
खडा झाली मोटी गड़ो ही० नयण जाण अग्नि ज्याल ।।२१॥ देवो का रूप
देवी दीठी बोहामणी । सकत त्रिशल छि हाथ ॥ रूडमाला गलि ललकतीही। विठी छि संघनाथ ।।२।। लांबी जीभ छि सत्तडी । राता मोटा दाँत ।। उह हहती मुख पसारती ही बाघेण नी होइ भ्रांत ।।२३। कोडौ सम मोटे रडे । फाटे डोले जोय ॥ अनेक जीव हणावती होन परतक्ष मरकी होय ॥२४॥ हाथ काती मद् कांपती । कांपती कोपि मपार ।।
मद्य पीइ नरन् बली ।ही. सोकोत्तरी भयंकार ॥२५।। ममयचि समयमति को देखकर रामा द्वारा विचार
ब्रह्मचारी राय देखीयो । लखीयो काम स्वरूप । कए इंद्र स्वर्ग तणो हो। के मही माहि महा भूप ॥२६।। * पंयालनो राजीयो । के धनपती के चन्द्र ।। के ब्रह्मा के ईश्वर ही। के हरी के बलभद्र ।।२७॥