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________________ १५४ यशोधर रास भास होवोलसानी देवी मठ की भयंकरता दूर थो देवी मठ तदा । दीठो दूरंग बिसाल ।। पाषल फरतो उपकन । हींदोलडारे । अनेक तरु छिरसाल ||१|| केसू जासू बन सीहां । रातला असोक अपार || जाणे भयभीत वसंत । हो। भेटण मांस विस्तार ।।२।। महडा मोरया बह यहां । फलगलि बारबार । जाणे रडि देवी भयें । हो । वसंत मूके ग्रांसू पार ।।३।। काला बाबू फल करी । काला वृक्ष तमाल ।। देवी मेटण मावीया ही जा पसाय बिकसल ।।" ताड तणा तरु जन्नत । ताड फल स्याम विशाल ।। देवी मलमा बहु रूप धरी ही। जाणे ईस गलि रूडमाल ॥५।। खजूरी नारी अली । घडीयां बांध्यां छेदेय ।। देवी मलवा सजयीया ही। मच धडा सिर लेप ॥६॥ पूला दीसि 'मध' सरगां । माखी अमें अपार ।। जाग देवी कारणे ही। सूका मांस तरण भार ॥॥ ठामे ठाम चणोठडी 1 रातडी दीसि भोय ।। देवी पूजवा कारण ही। अभक्ष थाल भरयो जोय ।।८।। फला तिहां बली चांपला । पीला पेखीया जेह ॥ देवी कोपि कांपता ही। जागो पिजर हवा तेह || कोयल सूडा सारसा । बोलि भमर गजार। जाणे बीहना भयकारी ।ही। स्तवन करिज प्रपार ।।१०।। मत गनिको सीमडि । मागास माथां मांड ।। जाणे जाता जीचनें पी0 खावबे जूइतें रांड ॥११॥ अनेक जीव मढ पाखलि । बाँध्यछि वडी पार ॥ भूख तरस पीडया घण ही करय पोकार अपार ॥१२॥ मद्यपान करि जोकटा । जंगोटा गलि चंग ।। सायि संख सीगी सींगहाँ ही। कली कली करिय उतंग ॥१३॥ डम डम डमरू डाकला ही० तवली ताल कंसाल ।। रएभेरी रण काहल हो। तूर वाजि विकराल ।१४।।
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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