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यशोधर राम
के नंदी के नल कह । नलहु रूपह पार ॥ सक कह के सरगुरु ।ही। सूरवीर उदार ।।२।। बालिका जारणे सरस्वती । रोहणी लक्ष्मी होय ॥ इन्द्राणी उर्वसी कह ही० नागकुमरी के जोय ॥२६।। कि सावित्री सीता कहूं । तोरा मंदोदरी एह ।। गौरी के प्रजनी कह ही इस न लाह ' ३.ji रूप लक्षण बहु गुरंग निलो । कला अनेह ठाम ।।
मारीढत न प पूछए ही। कहो तुह्म कवरण सु नाम ।। ३१।। राजा द्वारा प्रश्न
कवण गाम थका प्रावीया मात तात कुरण टाम ।। अकल रूप ए प्रमोपम ।ही कवरण मो हो साल सुधाम ।।३२।। दयाधर्म तहा जय करो। त्रिभुवन माहे जे सार ।। आशीर्वाद दें उच्चरें नही | मारिदत्त अवधार ।।३३।। काम तम्हारू तम्हे करो, मम पूछो प्रा बात ।।
अह्म वृत्तांत दयामय ही। तह्मने गमें जीवघात ।।३४।। साधु यूगल द्वारा उत्तर
प्रघा प्रागनि नात्र । बिहिरा आगलि गीत ।। पापी ग्रागलि धर्मकथा ।ही०। कहिता होइ विपरीत ॥३५।।
पहेलां सू गण गोठडी । उसर ममें बीज रोप।। गिर सिर नील पेर खेडव' ही सिम ब्रह्म वचन निरोप ।।३६।।
मारिदत्तकेहदय में क्याभाव प्राना
दमा भरी अह्म मोठडी. रुचे नहीं राय मान ।। पीतज्वरी मन रुचि नहीं, साकरनि दूध पान ।।१।। इम जारपी निज हित करो, प्रह्म ने म पूछो प्राज ।।
जेहनि जेहदी गति सही, तेहेनि सेहवी मति राज ।।२।। खड़ग का त्याग
मारिदत्त तन उपसम्यो, खङ्ग मुक्यो तेणी वार ।। कर मुगम जोडी करी, करी कोफ्नो परिहार ।।३।। ब्रह्मचारी प्रति बोलियो, विनय सहीत उदार ।। कहो कथा तमो रूखड़ी, स्वामी दया भंडार ||४||