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________________ बाई अजीतमति एवं उसके समकालीन कवि १४७ ले नगरी पक्षण दिसा ना| पंडमारी विख्यात ॥ देवीकूर कुरूपिणी । नाका वाहलो तेहनि जीव पात ।।२।। निसा विण ते पापणी ॥ना करि अनेक उत्पात ।। राजादिक मिथ्यातिया ना०।। समय करि जीव घात ।।३७|| पशु पक्षियों के युगलों को लाना देवी मढ राय भावीयो ॥ना|| लोक सहीत भजाण ।। देवीनें पाए पडयो ।।ना०|| मनलाउ घणी चार ॥३१॥ अलचर जीव तीन जुगम तिहां प्राणीयां ।ना०|| कूबाड छाग पराह ।। हरण रोज ससा सांबरां ॥ना०।। महेख मतंगज घोडु ॥३३॥ रीर नीता करू सान गनुन नीकाल : साप सरड पहली धामणी ।।ना मारि स्वान विकराल ॥३४॥ सर करभा सृषभादीक ॥ना| वनचर प्राण्या अनेक ॥ समलि सीयारणा सारसा ना०। हंस वायस चली भेक ॥३५॥ नभचर गीत मोर चकोर लवारडा नासाकोयल कीर कपोत ।। चकवा चकवी पारेवा ।।ना०|| टीटिभ गूहरु बोत ।।३६।। महुसी सोलीना खडगीश्रा नालाकोंच मेंरड गुरूड ।। एह प्रादि नभचर घणा 11नागा बांधवानवास किंऊड ।।३७।। जसपर गीत मछमगर जलमारपसा ॥ना|| करचला काचबा भर ।। जलहस्ती आदि जलचरा ।।ना०॥ बहू प्राण्या ते क्रूर ।।३।। मह पालि ते बांधीना ।।मा०॥ वापडा करि पोकार ।। भूष तरष प्रति पीडीयां ना || भयकरी कांपि प्रपार ।।६।। पुरध्दारिण खणी मही ||ना०॥ खाउ पाउचा ठाम ठाम ।। पापी हंस कलोकनि ॥ना। मरक जावाने काम ।।४।।
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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