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यशोधर रास
बोगी द्वारा रावण विभीषण प्रावि को देखने की गर्वोक्ति
सांबू कूछ नख मोटेरठा नामोरज पीछनां छत्र ।। लोक पूछि वात ते कहि ना०/ फांकल बोलि बिचित्र ॥१६॥ रावण लगानगो ना! सो गनी ब्रह्मा ईश्वर देखीया ना०।। जमीयो लक्षमी साथ ।।१७।। हरी सू' मीठी करी गोठडी ।ना०।। कोधी बलभार साथि ।। पांचे पाणवा मानता ॥ना०॥ मंत्रषतिमाहारी भाख ।।१।। रामलक्ष्मणे वषाणीयो |ना०)। सीतानि पूजा कीथ ।। अनेक राणा राय राजीया ||ना०॥ तं मूठ वादि प्रसीध ।। मारीरत बात सांभली ॥ना०।। तेंडाव्युतं ततकाल ।। ते प्राव्यु ऊताचलो ।।ना०॥ साथ जोगी विकराल ॥२०॥ रायि प्रावंतो देखीयो ।ना|| साहामु चाली लागु पाय ।। कर जोडी राय वीन बि मागाससि करो पसाय ॥२१॥ जोगी किहि राय सांभलो ॥ना०॥ समल बीधामू पाश हूं। तूसूतो राज देऊ, ना| रूसू तो सवि वीपास' ॥२२॥ तंत्र मंत्र यंत्र घणा एना॥ पिर पिरधाऊर्वाद ||
विद्या प्राकाश गामिनी नाका विद्या प्रजुसीकरणछि प्राद ।।२३।। रामा द्वारा प्राकारा गामिनी विद्या प्राप्ति की इच्छा तन राजा प्राचंभीयो ।
नायोल्यु मधुरीय वाण ।। प्राकाशगामिनी मुझ दीयो ना०॥ विद्या सम्हे सुजाण ॥२४॥ नोगी द्वारा उपाय बतलाना
जोगी किहि राजा सांभलो ना०॥ विद्या सीझवा ऊपाय ।। चरमारीजे देवता ||ना॥हनी भगत जो थाय ॥२५॥ थलचर जलचर नभचरा ना|| जीव जुगम प्राणदि । देवी प्रागलि हिंसतां गाना || तलक्षण दूसि देधि ।।२६।। दीइ विद्यानभ मामिनि ॥ना०॥ मवर घणेरी रध्य ।। दुर्भक्ष रोग मरकीटल ना।|| संकटटलि प्रसीध ।२७।। रायते वचन प्रमाण ना| मूकपरिण प्रपार ।। कुगुरि भोलभ्यां जीवडा ।।ना|| कुरण न पडि संसार ॥२८॥