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________________ १४० यशोधर रास जय जय करंता जिन सिर ढास्या । जनम जनम नो पाप पखाला। सहस्र नयणे नीहाल्या ॥८॥ एक सहश्र मात्रै सुम लक्षण । सणगारि इन्द्राणी विचक्षण ।। इक्षण सुखद सरूप ।६। स्तकन गीत नर्तन सुखदात । वीर नाम त्रिभुवन विक्षात ॥ पूजां जिन मात तात ॥१०॥ कही वसांत प्राप्यो तब बाल । बाजि मादल ताल कसाल ।। नाटक रच्यु रसाल ।११॥ निप्त निप्त सुरपति सेवा प्रावि । ब्रम्प काल भूषण पहिरावि !! . अमरी किनरी गुण गावि ।।१२।। तनु भन भोग विरक्तं जाणी। लोकातक देथे स्तव्यु वषाणी ॥ जय जय करता वाणी ॥१३॥ सुरपति सियका सू ले चाल्मा । मिली सिंच म त्यो ।। स्वामी संजम पाल्यो ॥१४॥ घात कर्म गिरि बम समान । प्रगटयो निर्मल केवलज्ञान ।। तनु तेजि जिस्यो भानु ।।१५ धनदत्त रचित ता सभा सुसोहि । त्रिमुधन जन केरा मनमोहि ।। अगि तुह्म सम नहीं कोहि ॥१६।। असोक वृक्ष सोहि सुखकार । पुष्प वृष्टि सुर करि उदार ।। दुदुभी नाद विस्तार ॥१७॥ घोंसठ चमर अमर तुझ ढालि । दिव्य ध्वनि धर्मने मत प्रालि । भामंडल सुविशाल ॥१८॥ रतन जडित सिंहासन दीसि । छत्र त्रय सुर परि जेहै सिसे ॥ टीटी सहूं मन हीसि ॥१क्षा छाया रहित चतुर्मुस स्वामी । पुण्य फलि तुझ महरति वामी ।। रक्ष राक्ष शिवगामी ॥२॥ मोह राक्षस मुखथी मुझ राची अनेक जीवने प्रसय जे पाखो । मुक्ती मारग मुझ दाखो ॥२१॥ राग द्वेष मोटा विसासा । इसया दीय माप संताप ।। सलो तेह विष व्याप ॥२२॥
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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