________________
१३८
यशोधर रास
भवि भोला भला भवीपाए ।सु०।। भावी आदिवा काज ।। वीर स्वामीनि मन रलीए ।।सु०।। साथे सामग्री समाज ॥२४॥ श्रेणिक राजा नि देषियो ए ।।सु०।। समोसरण भवतार ।। गज श्रको हेठो उसरयोए ॥सु०॥ जाणि विनय अवतार ॥२५॥
सनि सनि राय चालीयो, प्रानंद भंग न माय ॥
छत्र चपर विरण गुणनिलो. सुधो मन वच काय ।।१।। मानस्तम का भव
मानस्थम्भ शोभा घणी, मान निधारण दीठ ।। बीस सहरा पम थारीयां, पढता हरष पईठ ॥२॥ गह सरोवर बली खतीका, फलवाडी बढ्नु फूल ,। कांचन गद वारु बापिका, जन्तु रहित अतूल ॥३!! ममरी किनरी अपहरा, करय ते नाटक साल' ।। उपवन वाडी फूलि फली, रतन वेदिका विसाल ।।४।। पंच वरण धज लहलहि, मशीपय गढ़ उत्तंग ।। कल्पवृक्ष पंकति भली, उन्नत शाथा अभंग ॥१॥ रत्नस्तूप तेज झगमगि, मगमगि धूपह कुभ || हविली हरषदीपि. दीसि नही किही दंभ ॥६॥ नीमल फटक तणों सुणो गढ उन्नत अभिराम ।। बार सभा तिहाँ रुवटी, भवीयां करे विनाम ॥७॥ प्रथम सभा मुनिवर तणी, कल्पनारी बीजी होय ॥ अजिका समा श्रीजीसणो, घोयी योतिक स्त्री जोय |८|| पंचमी वितर कामिनी, छठी नागिनी जाण || नागसणी सातमी सभा, पाठमी व्यतरनी बषाण ।।६।। नवमी योतिक सुरतणी, दसमी सुर कस्प बास ।। प्रग्यारमी नरवर सभा, बारमी तिर्य'च निबास ।।१०।। बाघ गाई गज सिंह सू, सर्प नकुल सुविचार ।। ग्राम सिंह मृग र महिष, करि हंस मार्जार ।।११॥ वातर मोढ़ा मोरड़ा, गरुड़ भेरंग अतीव ॥ समली सिचाणा सेहली, नेह लाग। त्याहा जीव ।।१२।। जात बैर छांडी करी, क्रूर जीव वहा शांत ।। भूष तरस पीडा नहीं, नही पाणी भन भांति ।।१३।।