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गई मजितमती एवं उसके समकालीन कवि
वनवाडी सह गहगहीए |मा छ रुतु तो बह फल ।। एकि वारि प्रगटयाए ॥४०॥ वाय सुगन्ध मनुफूल ॥१०॥ कोयल करि दहकहाए ।मा०।। दूकडा भमर गुजार ॥ ममरि किनरी प्रपश्चराए ।।सुगा रासडा गावि सार ।।१२॥ सादी बार कोडी बाजीत्रए ।।मा011 मादल ताल कंसाल ।। भेरी मूगल घरण गहगहीए ।।सु०।। सरणाई साद रसाल ।।१२॥ अमर किनर खग फरणपराए 11मा०॥ करय ते जय जयकार ॥
विमान बिठा विद्याधराए ||सु मावया जान अपार ।।१३। रामाणिक की प्रसन्नता
हे वाणी सुणी नप हरषीए ||मा०॥ सींचीउ अमृत पार ।। सिंघासण पकी उठीउए सुका चाल्यो सात क्रम सार ।।१४।। धीर देसि विवेकसू ए मा० नमयो राय उदार ।। वनपालनि पसाय दीयोए ।।सु०।। सहू भूषण गलिहार ।।१५।। आनन्द भेरी उछस्नीए ।।माः ।। वांदवा वीर जीवंद ।।
राजा माल्यो कटक सूए ।।सु०।। अंसउरी सूप्राणंद ॥१६॥ श्रेणिक का समवसरण के लिये प्रस्थान
हाथी प्रा बहूं सणगारीयाए ||सु०।। घमघमि धूधर मास ।। घंटा घण, टंकार करीए ॥माoll सूदि मोनी जाल ।।१७। कानें हेम चमर पर्याए ॥मा| अंबाडी घजा फार ।। पंच वरण वस्त्र पहिरिमाए ।।सुगा सुभट हाथी हथियार ।।१।। जगमग भाला फल हलिए IIमाOI1 विठा मंकुश परी हाय ।। कनफ लगाम मोती जडयाए ।सुगर कंठ चमर सोहि साथ ।।१६। तुरंग चानि बमकताए ।।मा०।। रतन जडीत पलाण ।। गजबिसी राय चासीयूए ।सु०॥ चेलणा सहित सुजाण ।।२०।। नगर तणा लोक सहए ।।मा0।। नर नारी धरीय उवाह ।। शय चाल्या जाणी करीए ।सु०।। उधक हवा माहो माहि।।२१।। एकि वारि सह संचरवाए नामा०॥ सेरी समदं उत्तग ।। हाथि संचार करंतहाए ।।सुमा भीडाभि अंगो अंग ।।२२।। हार तूटि वेरिण छ.टिए 11०1। फाटि धीरयो रंग ॥ घाट पछि मोती कडेए ॥माछा तोटडी थकीम सुचंग ॥२३॥