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________________ १३६ यशोधर राम जिम रूकिभरणी सु माधवो || तो भ०|| रोहिण सू जिम चंद तो तिम वेला सूश्र ेणिक । तो भ्र७॥ जिम रती ॥ मकरध्वज || तो भ० तिम खेलणा सू कि । सो भय राज करे सुख कन्द तो ।। २८ ।। इन्द्राणीसु' जिम इन्द्र तु ॥ राज करि सुख समुद्रतो ।।१३।। वस्तु श्री कि राजा २ करे तिह राज, भोगवि सुख सोहामा || धर्मवन्त वली न्याय पालय पर उपकार करय घणों ।। प्रजा तणों सन्ताप दालय, जिनवर धरम करि भलो || अनेक भूप करि सेव, समकित गुणे करी मंडीयु | सेवे श्री गुरूदेव ॥ १ ॥ भास माल्हंतडानी एक बार राजा श्रीक ए महालंतडे । सभा बिलो गुसावंत || सुरणे सुन्दरे । सामंत क्षत्री मंडयो ए |माण सहित विद्वज्जन संत | मु १ चमर ढालि बारंगनाए । मा जारिए गंग कल्लोल ॥ करवली कंकरण रणभृणिए सुखा नयर बालि पती लोल ||२|| गज अवगाह गजगामिनिए | मा० ) आंदोलि वारोवार ॥ सिर वरि छत्र सोहि भलूए | मा० नीर्मल यस विस्तार ||०||३|| अनेक क्षत्री नृप पर ए । मा० नक्षत्र सू जिम चन्द्र ॥ भालि भाव सभातणो मलो ए । सु०॥ सहश्राक्ष जिम इन्द्र || सुमा सांभलि कवीनी कवि कला ए | मा० | काव्य कतूहल चंग || क्षरण एक षटन ताए | मा० वादीओ बाद नारंग ॥ सु०॥५॥ सारी ग म प ध नीसप्त स्वर एमा० तान मानादि संगीत ॥ सुधां गंगावती नृत्यकी ए मा नृत्य जोवि और बात || सु०॥५॥ बंदी जन वीरद बोले ए । मा० छंद प्रबंध कवित्त ।। दान देवि मनबांधीत ए मा धनपाल का श्रागमन घन धन ए नृप रीत || सु. ६॥ तीरिंग अवसिरि एक प्रावियो एमा० वनपाल राज दुधार || राज प्रादेशाथी हरीयो ए । मा० पोहोतो सभा मकारि || सु०||७| फल फूल भेट मूकी करीए | मा० बीनव्यु राय सीर नाय || घन वन त पुण्य करीए । मा० समोसरण अभिराम || || || विपुलावल मति स्वsो ए | मा०] महावीर जिन भवतार ॥ भाया अती सोमरणाए । । सु०॥ भवीभरण तारणहार ॥ ६ ॥ 18 ग 1. 1
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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