SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आई अजीतगति एवं उनके समकालीन कवि २५ कटी मेखला घिसी घूघरी ।।तो भ०॥ धमकि अतीही अपार तो ।। जाणे छटो हाथीयो तो भ०॥ उरवर सकिहार तो ||१३|| कोटि चंपा टोडर तुभमारुलो०। झूमणं झूलांक रसास तु ।। नाके मोती अनोपम ।।तो भ०॥ काने झबूकि झाल तु ॥१४॥ ग्वरो वांदतो मोती भरघों तो भ०11 पीमल सोहिगाल तु ।। सेसफूल रुडी राखडी ॥तो भ०।। आमही छिमरणी प्रालि तु ॥१५॥ दान सील तप भावना तो मला। करय मंगल गीत गान त । पात्र विविध ने मनरंगि ।।तो म०॥ दे विनीत दान मान तो ॥१६॥ जिन मुवन तिहां मामग्णां ।।तो म ।। सिखरबद्ध उत्तंग लो । भ्रूज तोरण कनक कलस तो म|| वाजिन बाजि सूरंग तु ।।१७॥ जिनवर बिन सोहामरणा तो म|| महोछय होनि गुणमाल तो ।। मनीवर तत्व पुराण सू॥ती म०।। कहिषर्म कथा विसाल तो ॥१८॥ वाडी अन तोहा सोहीयां |तो म०॥ फल फूल सहित अपार तु ॥ सुडा साद सोहि घरमा ।ता भ०।। भमरा रणभूणकार । १६॥ बाड बडा सेलाडी तणा ॥तो भ० यंत्रे पील्या रस अनु । झापेद्या सही उपगारि ॥तो भ०॥ कृपण तणा एह मेयता ।।२०।। मांबा रान रली भामणा । तो भ०।। सोहि तांहा सुखकारतो ।। कोएल करय टहूकडा |तो भ०।। विरहीनि दुःख अपार तु ।।२१।। सरोवर सोहि जल भरया ।तो भ०|| कमल कुमुद सहीत तो 11 हंस सारस सरस बोलि ||तो भ०।। चकवा चकवी सुमीत तो ॥२२॥ ते नगरीनु राजीत | तो भ. श्रेणीक राय सुजाण तो ॥ रूपि मनमथ जीतीउ तो भगा परतापिज सुभाण तो ।।२३।। सयल सजन धानंद करू तो भा जाणे पूरण चन्द्र तु ।। राज लीला लक्षण करी ॥ तो भ०।। जासों दूजो इन्द्र तु ॥२४॥ न्यायवन्त गुण प्रागलो तो भ०।। दानिज सो कल्पवृक्ष त् ।। समवित रयण मंडोयो तो भ०।। ऊपगुहन गुणि दक्षि तु ॥२५॥ तस मन रंजन सबढी ।तो भ.)। राणी चेलणा नाम तु ॥ सीलवती गुण बली ।।तो भगा। रूप सोभागनो ठाम तो ॥२६॥ समकिस व्रत करी मंडीत तो भ०॥ बोध नु मोडयो मान तो ।। एक जिह्वा हूं कि म कहू तो म०॥ सहू गुण तणो निधान तु ॥२७॥
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy