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यशोधर रास
नीत राखें नप अति घणं, लोक प्रनीत विकार । ए प्राचार्य मोटू पछे, डाहा लहि विचार ।।२।। इरयादिक मोभा सहीत, सहू सुहीतकारी देश ।। भवी असा जन सद्ध सा भनो, नयरह मुगुण कहेस ।।३।।
मास समालोनी राजगृह नगर वर्णन
राजगृह नगर छि रुन्नडू तो भमारूली। तेह देश माहि वीसालतो, पाषल फरतो ऊनत तो भ.।।
सोनातयो सोहितालतो ॥१॥ राता रतन को सीसे जड़यां तो, गगन किरण विस्तार तो ।। मध्या न रवी ताबडतो भ०।। रातडो होयि जीहां सार तो ।।२।। नील रतन करी वेधी तो भ०॥ कही एक नीलो होय तो । रवी जारणे नील गिरि परी ।।तो भ० ।। कन्यु एक श्रण संग तो ॥३॥ अलि करी पूरी खातीका ॥तो भ०॥ दीटी रहि पोर मान तो॥ जाग लोभिणी सपिश तु म। सभी रही एक निध्यान तु ॥४॥ पिर पिर पेस्वीयि पेषणां तो भ०॥ पोठी पोल पगार तु ॥ मोटी मेडी मतवारणां ॥तो भ०।। दारणां वन सूसार तु ।।५।। हाट श्रेण सोहामणी ।।सो० भ०।। साहि मेडी श्रेण तो ॥ घवल हर ऊन न घणा ॥तो भा। सात खरणा सोहि तेरण तो ।।६।। नर सुदर सुरपति समा ॥तो भ०॥ भूषण पिहिरि बायतु ॥ लीला लिहिर यहि वारीमा तो भ०॥ दान पूजा करि भावतु || कल्पवृक्ष जिम सोहीसा ॥तु मला भला मोग भोगवे चंग तु ।। घरि घरि मोहुन्छव होय ॥तु भ०॥ होड नित नवारंग तु ॥८॥ मोटा मेडी मालीया !|तु भ०1। विस्तरि प्रगुरु सुघूप तु ॥ चूा चंदननि कस्तूरी तु भ०।। परिमल महे महे रूप तु || घरास कपूर वली एलची ।।तु भ०। पान बीडा अखंड तु ।। भोगी भला सुख भोगवि ।।तु भOI। नहीं त्याहाँ पाप पाखंड तु ।।१०।। मंदरि नागरी पदमनी तु ||भ०॥ रूप सोभाग सोहंत तो। हाव भाव अनेक परी तो भ०।। कंतह चीत हरंत तो ॥११॥ मलपती चालि गजगामिनी ।।तो भ०|| वीछीमा नेउर नाप तु ॥ करकंकण चूही कही तो म०।। खलकती मांजोयाद तु ॥१२॥