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________________ याई अजीतमति एवं उसके समकालीन कवि १३६ रेहेंट चीत्कार तीरिग सरो ए, थुत पूरेछि एह तो || कवण चतुर नर गावता ए, पावि विकृती न जेह तो १६ जाई जूई जासू अशीए, सोवन केतकी कोड तो ।।। मोगरा मालली मचकुंद ए, चालीनि भषोड तो ॥२०॥ नानि केर नानारंग ए, नारेंग में नागवेल तो ।। कमग्ग्स कोठां केवडा ए, केवडा यांना केल सो मार॥ दिशि दिस द्राक्षा मंडप ए, उपि छाया प्रचूर तो ।।। पीवडा पंथ चाला ए, संताप में करि चूर तो बा२२।। नींबू जांबू जंबीरडीए, बीजोरा बहुभेद तो ।। यण भादि अनेक तरू ए. देखलां जायि खेदतु ॥२३।। क्षेत्र दीसि ध्यान्य लगाए, नीपना अनेक प्रकार तो ।। गग्दय कुणबी कन्यकाए, गावइ सरस अपार तु ।।२४।। ते सुरों वनि घणी हरणलीए, वेषी नचरि लगार तु ।। बोनय वेध्यांवली हरणाला ए, तुहू जाइ बनह मझार तु ।।२५।। बालकाने नयनें जीकीमा ए, लाजीया तेणी वार तो।। पंथी मा गान सुरणी करी ए, सांभरी पावे नीज नार तो ॥२६।। वदन नीहाल लता बापुडाए, जुड़ी नवि सकय लगार तो॥ एहवी गति विषई तरणीए, वीसरि विवेक विचार तु ।।२७॥ नयर पारणपुर प्रती भलाए, खेटक कट नाम तु ।। भरयां धण करिग करी घणं ए, करणय रमरण भभिराम तु ।।२।। अनेक लोक तीहा बसिए, हसए ते देवनो अपार तु ।। रूप संपदा चतुर परिणए, महाबन विविध प्रकार तु ॥२६॥ वन वन गिरि गिरि पुर पुरे ए, कनक तथा प्रतीवतु ।। जिन प्रासाद सिखरबंध ए, देखी हरर्षे भब्य जीव तु ।।३।। ठाम ठाम मुनीवर दीसिए, घेवंता उपदेश तो। नरनारी सणगार करीए, जिन पूजी सुविसेस ते ॥३१॥ वांदि मुनीने नीरमलाए, स्वामी वखल करि सार तु ।। च्यार वरण लोक पूरयो ए, देश सुषर्म विस्तार तु ।। ३२।। दूहा कटक नदी सियर तणो. मंग नही क्षण एक ।। कटक मंडित कर नर तणां, स्त्री सिर भंग विवेक ॥१॥
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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