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________________ १३२ यशोधा रास पंचोसर मोजन उन्नत ए, सत योजन आयाम तु । पोजन पंचास विस्तारें कह्यो ए, तारय भवीया सुठ'मनु ।।४।। कनक कलस करी खंडीयो ए, खंडीयो कुमतिनो मानतो ।। मानस्थंभ पागल भलाए, भली घंटा निधान तो ।।५।। सिखर ध्वजा घुघरी घणं ए, घमकि पवन संयोग तो।। लहलहिं गगर्ने दूरथी दीसे ए, दीठि दुरति वियोग तो ।। ६॥ कनकमय रतने जड़या ए, अष्टमंगल सहित तो।। रतनवेदी रली नामणीए, मणीमम बिब समेत तो 11७11 पंचसे धनष ऊनत मग ए एकः स पाठ प्रमार। तो ।। पंचवरण किरणें करीए, बी कीया कोटी भारत तो ॥६॥ भमर ससुर विद्याधर ए, चारण मुनी करें सेवतो । पंच चूरण स्वस्तिक करीए, करय पूजा नित देव तु ||६|| पंचामृत अभिषेक होइ ए, होइ त्यांहां नाटारंभ त् । प्रमरी किनरी जिन गुण गायिनिए, भांवि नाचि रंभ तो ।।१।। ताल कंसाल मादल भला ए. काजि अनेक वाजिव ता ।। भवीण जन भावि भावनाए पूजय जिन जग मित्र तो ।।११।। तेह मेरू पक्षण दसिए, दीसय भरत सु क्षेत्र तो। गंगासिंघु विजय करीए ए. सोहि खट खंड विचित्र तो ।।१२।। प्रारज खंड तिहां जाणीयिए, जाणे स्वर्गह खंड तो । मगध देश तिहा भलो ए, सहू देश माहि प्रचंड तो ।।१३।। मगध देश वर्णन पुण्य तीर्थ करी अलंकरमो ए, गंगा यमुना मध्यतो ।। ठाम ठाम मुनि तपि बलिए. बनें वनचरछि अबध्य तो ॥१४॥ सरोवर छ जीहां सोहामशाए, भामणां कमल विस्तार तो ॥ परिमलें बांध्यां भमरलांए, करसते रण भएकारतो ।।१शा निरमल अलि करी पूरीमाए, हंस करें स्वर सार तो॥ सारस चक्रवाकी सणो ए, कलीरव करय अपार तो ॥१६|| वनवाडी विवध परी ए, पिरपेर तर पर जुक्त तो ।। आंवा प्रांबली प्रामलीए, अशोक मवंती अति मुक्त सो ॥ १७॥ बोलो वकुल वली वलसरिए, कदंब चंपक करंट तो ।। बाडी सींचे वा बालकाए, गांवती हाके परहिट तो ॥१८॥
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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