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बाई प्रजौतमती एवं उनके समकालीन कठि
भूतल उपकारी सदा, सजन दुज्जन बेउ । तेह भणी समता पाणीयि, भला भट भालि भेउ ।।२३॥ दोष लीयितो लेथ जो, करो कवित कवि लोय ।। जूउका तणि भयें करी, वस्त्र न मूकि कोय ॥२४॥ सुवित्त सुकवी करच सुणी, फो एक पामि उल्लास । कामिनि नयन कटाक्ष यी, करय प्रसोफ विलाप्त ।।२५।। तुछ छे मुझ मति प्रति घण, घण प्रेरघो गुरु भास । रास रचू एह तेह भणी, को मम करसो हास ।।२६॥
बिनय प्रदर्शन
थोता मन सुन भिर करी, सुगज्यो त्यजी प्रमाद । जोडता पद दोहलू, मम घरसो अनुवाद ||२७|| सप समो प्रोता भणो, गुण किहीयो एके जाण । दोष त्यजे दूर करी, गुण पादरि बपाण ॥२८॥ चालणी समवली जारपीयि, श्रोता वीजा भेद । दोष राखें हदि दृढ करी, गुणके रो करें छेद । २६।। एक नर काई लहि नहीं, सभा मांढाहो थाय । मिहिस पडधो जिमि मादणि, प्राछु मीरडोहो बाय ॥३०॥ गुरण जारणह पागल गुणी, करे ते विस्तार । दूर यो अलि कंज गुण लहि, भेक न नहि पिचार ॥३१॥
भास रासनी
बम्ब द्वीप भरत क्षेत्र वर्गम
जंदू पक्षि उपलक्षीयो ए, लक्ष योऊन जंबूदोपतु । दोए चंदा दोए दिनकरा ए, करय उद्योत जेम दीप तु ।।१।। सयल दीप सायर माहें ए, महीय मध्ये एहतु । लक्ष योजन उन्नत भणो ए, ऋणय गिरि नामि तेहनो बार नाम सुदरुसन तेह का ए, व्यु हो वने सोहें जे हतो। अपचरासुसुरि सेवयो ए, जयो एक सोल जिन मेहतो ॥३॥