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________________ = जिम लही मोप श्रपार पार पायो संसार तरणी ए 11 रोग वियोग विग्रहास, भास ए कवि देवेन्द्र भरिए ।। १५ ।। केवली एवं तवली प्रनुक्रमि गौतम स्वामि, सुधर्माचारज केवलीए ।। अंतिम केवली जारिण, जंबू स्वामी कीरती भनीए ॥१६॥ भूत केवली वली पंच, संसार दुःख हरिए । विष्णुनंदि मित्र होय, अपराजित विजित स्मर ए ।।१७।। रंग व पूर्व के ज्ञाता , गोवरधन गुणवंत वाणी भवी मा उद्धरे ए ।। भद्रबाहु बहूभेद, चन्द्रगुपती संसय हरे ए १८ दमपूर धरषीर, विशाल प्रादि मुनीवर हवा ए ।। जिनशासन उद्योत सबस मिथ्यात निवाराए ।। १६ ।। एकादशांग सुजाण नक्षत्रादि सोहा मगाए || अनुक्रम श्री कुंदकुंद, पंचनामि कोडरमा ए ।। २०।३ प्राचार्य वन्दना 1 उपास्यामि मुनि संत समन्तभद्र भविश्रां तिलो ए ।। प्रतिबोध्या सिव कोटि की स्वयंभू गुनिलोए ||२१|| पूज्यपाद प्रसोध, जिनसेन सासने चंदलो ए नोपम अकलंक वीर, वीर बौध जीतवा भलो ए ||२२|| गुणभद्रादि अनेक, पूर्वाचारज बहू हवा ए । तं व्याऊं धरी भाव, कामबोलित सिद्ध थषा ए ।। २३ ।। भट्टारक बन्बन्दा अनुक्रम श्री पद्मनंदि, पुण्यकंद पदोषरू ए ।। देवेन्द्रको मूति भयोभनि उछष करो ए ॥ २४॥ विद्यानंद मुनेन्द्र, तेह पट कमलदिवाकरू ए । मल्लि भूषरण माहंत, वचन सिधगुरण प्राकर ए २ घर स
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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