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________________ बाई अजीतमति एवं उसके समकालीन कषि १२६ लक्ष्मीचंद्र मुनिचंद्र, तस पद जलवि वृधि करू ए ॥ वीरचन्द्र विख्यात, अन्न त्यजि जस विस्तरथ, एकार। ज्ञानभूषण मुरूप, भूप सह मानि धणं, ए ।। लाड न्यात सणगार, शांति मूत्ति गौसम भणं, ए ।।२७।। तस पाटि उदयोचन्द्र, प्रभाचन्द्र सोहामरणो ए॥ वादि सरोमरिण वीर, हूंबई कुल कोडामणो ए |॥२८॥ अवनी अनोपम रूप, वादीचंद तस पर सोहि ए ।। वादी सयल सणगार, भवी प्रण जन तणां मन मोहि ए ||२९| रास रचना का संकल्प वहा एह गछपत्ति श्रादेसथी, रास रचेवा आज । उद्यम मांडयो मन रली, सबन प्रानंदह काच ॥३॥ लघु गुण देखी पर तणो, गिरि सम लेखि अह ।। बहू नीज गबह नही, कहीनि सज्जन तेह ।।१।। सजन प्रशसा सुजना मन माखरण समू,जे कहि तेह प्रजारा ।। पर संतापि सज्जन तपि, माखण एह गुण हारण ।।२।। सजनासा करसेलडी, सुनू सुगंध सुधूप ॥ बाटीय पीलीय छेदीयु, दह्यो नदाखिक रूप ॥३॥ सज्जन नेवली बांसली, भला उपना भसि वंश || छेद्या भेयां बहु परी, मधुर वदि सु प्रसंस ॥४|| सज्जन रचतां कर थकी, स्वरमा जे परमाणु ॥ ते परमाणं करी रच्या, मेष चंदन चंद्र जाए ||५|| पावस रुतु घन ऊपगरें, ग्रीष्मे पन्दन चन्द्र ।। सजन सदाए ऊपगरि, सह जन नयनानंद ।।६।। सज्जन सरीसी गोठडी, दिन दिन दीउ देछ । दुज्जण दूर दीसि रषे, छायम पडो एक खेव |७||
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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