SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बाई अजीतमति एवं उसके समकालीन कवि गणधरों की वन्दना मास दोमतीनो भव भवन सहीत, हिना न गणधर वरणवू सार संक्षा सहीत भली परिए || १ || . पमसेन छे यादि प्रादि जिनह चोरासी हवा ए । अजीत गणवर नेऊ, लेऊ गुण सिहसेन भाए ॥ २ ॥ गंभवनि गत पंच, सहित चारुषेणादिक ए ॥ व्रजनाभि आदि होय अभीनंदन सतत्री अधिक ॥३॥ सुमति एक सो सोल. चामर मुख्य गणाधिप ए ।। पद्मप्रभ सत एक दस सुवज्य चामर भू स्वामी ||४|| पचार' ले सुपार्श्व गणपति बलपूर्वक सरणी ए ॥ त्राणं चन्द्रप्रभ देव दत्त प्रमुख सदा भरण ए ॥ ५ ॥ 2 पासी पुष्पदंत, संत विदर्भादिक सहीए || गारादि गोस, सीतलनि एकासी कहीए ॥ ६ ॥ ॥ कु प्रधान यांस, सत्योत्तर सत्यें भगोए स्यामठ श्री वासुपूज्य पूज्य धर्म प्रादि गणुए ॥ आ विमल पंचावन मेह, धीरा मेरू श्रादि कह्या ए ॥ गन्द्र अनंत पंचास, आशाजयि जयायं लह्याए ||८|| त्रयतालीस गरीष्ट, श्ररीष्टसेनादिक धर्मनिए || छत्रीस शांति चक्रेश, चक्रायुध भादिशमंदे ए । १ । ३ यांक पात्रीस गणेन्द्र कुंथु शंभू स्वयं प्रमुख अरति श्रीश गणेश कुंध मुक्षध्याइ होइ सुख ||१०|| यावीस विसार, पूर्वक गरिणमल्लिनि भलाए । मुनिसुव्रत नि मठार, मल्लिमुख सही गुण निलाए ॥। ११॥ गणधर सत्तर होय, सुप्रभादिक नमिनायक ए । नेमि जिननि अठ्यार, वरदत्तादि वरदायक ए ।। १२ ।। दशदिशि यश की वास, पासनि यस स्वयंभू मुख ए ।। गौतम श्रादि श्रग्यार, वीरनि विस्तारित सुख ए || १३|| एवं कारें जारि गरणघर संक्षा चौदसो ए ॥ बावन पावन होय, जोई श्रागम नित पभ्यास ए || १४ || ૨૭ C
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy