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हे कुटु
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अनंत अनंत सुगुण नीलो, तिलो त्रैलोक सोहें ॥ अनुदिनु जिहूं अनुभवु तहां बहुत उद्या ॥१५॥ धर्म धोरंवर धर्मनाथ, पाथो विधि गंभीर । अनंत चतुष्टय मन्दिरो भेद र राग र धीर ।। १६ ।। शांतिकरण जगे शांतिदेव, सेवि सुर विद्याधर । पट खंडाविप कोटि काम, गयी रूप मनोहर ||१७||
कुथु मादि जीवह दयाल, जिन कुंधु समर्थ । मिथ्यामत तम विघट्यो, प्रगटघो परमार्थ ॥ १८५ ॥
अर श्रभ्यंतर बाह्य लक्ष, लक्ष्मी करी मंडित | चतुरानन चतुरपरि, धणु सेव पंडीत ||१६||
सुर मुकुट स्थित मल्लिमाल, पूज्यो पद पंकज | काम मल्ल प्रति मल्ल मल्लि जिनगत सत्य बज ||२०||
सुव्रत संयुत सुव्रत जिन, दिन दिनपती शसी ।
करय प्रदक्षरण मेरू समो सम दम की वसी ॥ २१ ॥
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नमि जिन नमीत सुरेंद्र द, कुंद चंद जसोज्जल । लप्त सु कांचन सद्सुवर्ण, कर्णं सुखद जेह स्वर ॥२२॥
धर्म महारथ जैसो नेमि, नेमि जदुकुल मंडरा ।। सामेल वर जिनाभिराम, काम कुमति बिड ||२३||
नील वर्ण तनु पार्श्व स्वामि, कामिनि रती दूर || फरणपती पूजीत जित मदाष्ट, दुष्ट कमठह चूर ॥ २४॥
वर्षमान जस वर्धमान त्रिभुवन विस्तरयो ।
कलियुग मांहि सोक्ष कूप, उपकारज करयो ||२५||
वस्तु
ए चोवीस जिन जिन त्रिभुवन ईश ।
अतीत अनागत सहीत सदा, बाहू हू हैये भाव प्राणी ॥ संसार सागर तारण, कारण सहू मंगलह जातीय | वेहेरमाण बीसे सहीत, सहीत वचन सुखदान ॥ श्री संवह मंगल करो, शेवेन नुस विक्षात ॥१३
south.
यशोधर रान