________________
दाई गाजीत मनि एवं उसके ममकालीन कवि
यशोधर एवं चन्द्रमती की पूर्व भवों की कहानी सुनकर कोटवाल एवं मारीद राजा भयभीत हो गए और उन्होंने जैन धर्म स्वीकार कर निम्न प्रकार विचार प्रकट किये :
अाज निलामणि रस्म में पाम्यू, पाम्पो धर्म कल्प वृक्ष । जिनवाणी जिनयन मायद, बिरिण जाणते वक्ष !!२!!१:३।।
राजा यशोमति एक दिन वन में गया जहां सुदत्ताचार्य मुनि ध्यानस्थ बैठे से राजा ने मुनि दर्शन को अपशकुन समझा और मुनि के ऊपर ५०० कुत्ते छुड़वा दिधे । लेकिन मुनि की तपस्या से कुले शान्त होकर बैठ गये। तब राजा तलवार लेकर मुनि को मारने चला। उसी समय उसे कल्याणमित्र मिला जो मुनि की बन्दना के लिए वहां आया था। राजा से उसने मुनि बन्दना के लिये कहा लेकिन राजा ने कहा कि उनके दर्शन तो अपशकुन है। कल्याण मित्र ने राजा की बहुत ग़मझाया तथा का नानत्व लो मरल स्वभावी, त्यागी एक शुद्ध परिणामी होने का लक्षगा है 1 उसने कहा कि ये कलिग नरेश सुदत्तराज है राजा और कल्याण मित्र में उनकी वन्दना श्री तो मुनि ने घमंवृद्धि हो ऐसा प्राशीर्वाद दिया । राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ नथा वह अपने किये पर पछताने लगा । उसने अपना घात करना चाहा लेकिन प्राचार्य श्री ने उसकी मन की बात जानकर रोक दिया । राजा मुनि से बड़ा प्रभावित्रा हुआ।
___ इसके पश्चानु मुनि ने यशोधा राजा एवं चन्द्रमती के पूर्वभवों की कथा कह सुनायी तथा प्राट के मुग का वध भी कितने जन्मों के लिए दुखदायी होता है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण उसके पुत्र पुत्री हैं बतलाया। राजा को तत्काल वैराग्य हो गया तथा अभय रुचि को राज्य देकर पांच सौ राजाओं के साथ मुनि बन गया। इसके पश्चात अभयरुचि एवं अभयमति ने भी जिन दीक्षा धारण करली मारिदत्त राजाको उक्त सब वृतान्त सुनकर वैराग्यभाव उत्पन हो गए । सुदत्तचार्य ने उसके भी पर्वभवों का वृतान्त सुनाया। इसके पश्चात् मुनि दीक्षा धारण कर स्वर्ग प्रास्त किया 1 चण्डमारी देवी के पुजारी ने भी हिसाहति छोड़ कर जिन दीक्षा पारण करली । देवी के मन्दिर को स्वच्छ कर दिया और जीव हिंसा सदा के लिए बन्द कर दी सुरत्ताचार्य ने समाधिमरण करके १६वां स्वर्ग प्राप्त किया। अभयमती एवं अभयरुनि ने भी कठोर तप साधना द्वारा स्वर्ग प्राप्त किया।