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________________ १२० देवेन्द्र कवि हो गया । नगर के बाहर तीन दिन पूर्व ही दिगम्बर जैन मुनि सुपत्ताचार्य का संघ माया था। प्राचार्य के तपोबल से चारों तरफ हरियाली छा गयी थी। उसी संघ के ये दोनों साधु एवं साध्वी थे जो प्राहार के लिए नगर में जा रहे थे।। राजा मारिदत्त जैसे ही नर युगल का वध करने के लिए तलवार सम्हालने लगा, दोनों साधु साधी ने राजा को प्राशीद दिया तथा उसके दीर्घजीयन एवं यश की कामना की। राजा उनके वचन सुन कर उनसे अत्यधिक प्रभावित दया और अल्प वय में ही साथ जीवन अपनाने का कारण जानना चाहा । ब्रह्मचारी ने राजा से कहा कि वह इनके सम्बन्त्र में जानकर नया करेगा क्योंकि वह स्वयं सो पाप बुद्धि में फंसा हुआ है । राजा ने तत्काल तलवार छोड दी और उनसे पूर्व भाव जानने के लिए प्राप्तुर हो उठा। मारिबत्त तब उपमम्यो, खड्न मुक्यो तेरिए वार । कर युगम जोडी करी, करी कोपनो परीहार ॥३॥२४॥ इसके पश्चात् ब्रह्मचारी ने निम्न प्रकार कथा प्रारम्भ की: भारत देश के प्राय खण्ड में प्रबंती प्रदेशा था जो अपनी प्राकृतिक मौन्दर्य के लिए सर्वत्र प्रसिद्ध था। उज्जयिनी उसकी राजधानी थी जो सभी तरह से सम्पन्न नगर था। जिसका कवि ने बहुत ही विस्तृत वरांन किया है। वहां का राजा था यसोत्र जो क्षत्रिय वंश भूषण था । रागी का नाम चन्द्रमती था जिसकी देह का निर्माण मानों स्वयं विधाता ने ही किया था। कुछ समय पश्चात् उसको पुत्र रत्न की जब प्राप्ति हुई तो चागे प्रोर प्रानन्द छा गया। राजकुमार का नाम यशोधर रखा गया। नाम बसोधर तेह वीकए, बहु पिरि करि उछाहतो। रतन जडित भूषण भलाए', पहिरवी धरि ऊमाहतो ॥२३॥३२॥ पांच वर्ष का होने पर राजकुमार को पढने भेजा गया जहां उसने सभी विद्याएं सीख ली । न्याय, व्याकरण, छन्द, अलंकार तक संगीत, ज्योतिष, प्रादि सभी शास्त्रों में पारंगता प्राप्त की। युवा होने पर उसे युवराज पद से सुशोभित किया गया । युवरांब के विवाह का प्रस्ताव लेकर बराइ देश के राजा सालिवाहन के पास भेजा । उसकी पुत्री का नाम अमृतमती थ। । अब अमृतमती का लग्न लेकर वहां का मंत्री उज्जधिनी प्राया तब अनेक प्रकार के उत्सव किए गए । पत्रियां लिखी गयी और सहस्त्रों कुटुम्ही जन एकाविस हर। नाच गान एवं संगीत समारोह सम्पन्न किए गये । उजमिनी से बारात बाराड देश गयी जहां उसका इतना अधिक स्वागत एमआ कि लोग प्रापचर्य करने लगे । दहेज इतना अधिक दिया गया जिसका
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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