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________________ बाई मजीतमती व उसके समकालीन कवि ५. यशोधर चरित्र प्राचार्य सोमकीति संस्कृत संवस् १५३६ ६. मशोधर रास हिन्दी ७. जसहर बरिउ पं. रइधू अपभ्रश १५ वीं शताब्दि कविवर देवेन्द्र के पश्चात् संस्कृत एवं हिन्दी कवियों को और भी यशोघर काव्यों की रचनायें मिलती है जो उनकी जीवन कथा की लोकप्रियता की द्योतक है। देवेन्द्र के यशोधर रास की वही कथा है जिसका हम अकादमी के पंचम भाग में सार दे चुके हैं फिर भी पाठकों की जानकारी के लिए यशोधर रास का संक्षिप्त सार पहां भी दिया जा रहा है। कथासार भारत क्षेत्र के प्रार्य खण्ड में योष देश था जहां को प्राकृतिक सुषुमा निगली या तथा प्राणीमात्र निर्भय होकर विचरण करते थे। राजपोर नगर में महलों की पंक्तियां एवं मन्दिरों के शिखर दूर से ही नगर की भव्यता एवं सुन्दरता का प्रदर्शन करते थे। नगर में सभी जाति के लोग रहते थे । योष देपा के राजा मारिदत्त था जिसका राज्य वैभव निराला था। वह अत्यन्त प्रतापी राजा था। एक दिन उसी नगर में भैरवानन्द नाम का एक जोगी पाया जिसके हाथ में त्रिशूल था । यह उमरू बजाता तथा वनबरों की हिंसा करने में मानन्द मानता था। उसने नगार में आते ही अपने ज्ञान विज्ञान के सम्बन्ध में अनेक बाते बतलाई तथा कहने लगा कि उसे राम लक्ष्मण, पाण्डव आदि दिखलायी देते हैं और वह जनता को भी दमन करा सकता है । जोगी को राज दरबार में बुलायागया जहां उसने राजा को प्रभावित कर लिया और जब राजा ने आकाशगामिनी विद्या प्राप्त करना चाहा तो उसने चण्ठमारि देवी की भक्ति एवं उसके आगे थलचर जल कर एवं नभचर जीत्रों के युग नों की बलि प्राकामा गामिनी त्रिवासिद्धि के लिए आवश्यक बतलाया। राजा ने अपने सैनिकों को तत्काल सभी प्राणी युगलों को लाने का प्रादेश दिया । चंडमारी का मन्दिर पशु पक्षी युगलों से भर गया। लिसा का घोर वातावरण बन गया । मन्दिर में चीत्कार एवं पिल्लाह के अतिरिक्त कुछ भी नहीं रहा । इसके पश्चात् भैरवानन्द ने कहा कि जब तक मानय युगल को बलिदान के लिए नहीं लाया जावेगा तब तक विद्या सिद्ध नहीं होगी 1 राजाके प्रादेशानुसार उसके सनिक चारों ओर दोड़े और मार्ग में जाते हुए एक बह्मचारी एवं एक ब्रह्मचारिरिण को पकड़ कर देवी के मन्दिर में ले पाये । राजा मारिदत्त वहीं था । मानव युगल और वह भी साधु के वेश में तथा सुन्दर तथा कान्तिमान देह युक्त शरीर धारियों को देखकर राजा माश्चर्य चकित
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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