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________________ देवेन्द्र कवि देवेन्द्र कवि भट्रारक सकलकोत्ति के ग्राम्नाय में होने वाले भट्टारकोंसकनकीत्ति, मुक्नीनि. ज्ञान मूषण, विजय कीत्ति शुभचन्द्र, सकल भूपरण, सुमति कीति मुगकीति जसे भद्रारकों एवं ब्रह्म जिनदास एवं उनके शिष्य शांतिदास प्र. हंसराज एवं क. राजपाल के व्यक्तिगत एवं कृतित्व से बड़े प्रभावित में इसलिए कवि ने जमका साभार उल्लेख किया है । कवि के समय में ब्रह्म शातिदास थे जिनके उपदेश एवं प्रेरणा से कवि की धर्म एवं साहित्य रचना की और प्रवृति बड़ी । यशोषर के जीवन को लोकप्रियता यशोधर राजा का जीवन जैन समाज में मत्यधिक लोकप्रिय रहा है। द्रव्य हिंसा के स्थान पर भान हिंसा भी कितनी पाप बन्ध का कारण बनती है यही इस काव्य का मुख्य संदेश है इसलिए महाकवि पुष्वदन्त से लेकर देदेन्द्र कवि तक निम्न कवियों ने अपनी शैली एवं भाषा में यशोधर काव्यों की रचना करो यशोधर के जीवन का एक फीतिमान प्रस्तुत किया : १. जसहर नरिउ महाकवि पुष्ादन अपभ्रश ६ वीं शताब्दि २. यशस्तलक चम्पू सोमदेवसूरि संस्कृत शक संवत् ८१ ३. यशोधा चरित्र भ। म कलकीत्ति १५ वी शतारिंद ४. यणोधर रास व, जिनदास राजस्थानी १५ वीं शताब्दि मूल मंत्र भारती गच्छ पपनंदी गई राय तो। नेह पाटि गोहे दिनकर मकल कीरति गुण ठायतो ॥५०॥ भुवनकीति मवि विज्ञात, नस पाट तार सयागार तौ । ज्ञानभूषण ज्ञानदायक, गोयम सम प्राचार लो ।।५।। विजय कीरती गुरु गच्छपनी, वचन सीधी मुनि इंसतो। नम पटोधर सुभचन्द्र बादीस्वर वर बसतो ।।५२।। हूंव कुल बर्ड माजन सफल भूषगगो नुन 'पायतो । वादीय मान मर्दन पट् दर्गा चादी रायतो ।।५।। सेह पारि सुमती कीरती सूरी, तेह पाटि उदयो भगा लो। भयोया कमल विकासबा, गुणकीरती गुण जाणतो ।।५४।। एह गच्छपनि तरिम अन्वय, ब्रह्मचारी जिरणदास तो। मांतिदास तम पट धम, बा हंसराज गुणवासतो ॥५५।। राजपाल ब्रह्म तेह पाटि, समिति श्री शांतिदास । नेह उपदेम धनगोर श्री जिनयम उल्हास तो ।।५।।
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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