________________
११६
देवेन्द्र कषि
व्यभचारिणी रे गमन मेध र सि चढी ।
रवि उपरि रे देवाडि मांखि रातडी ।।७॥५३॥ उक्त पद्यों में सूर्यास्त होने पर वह किसको कैसा लगता है इसका सामान्यत पन्छा वर्णन मिलता है। इसी तरह कवि में चन्द्रोदय वाा भी अच्छा वर्णन किया है ।
पूरब दिसी रे गुफा पको ए नीसरी । गगन वने रे संचरय नारी ॥mi किरण नखे रे अंधकार गज विदारयो । जाणं तारा रे मुक्ताफल विस्तारयो ।।२३।। गामी भीतल रे अमृत मय कहि वाड तो ।
लांछन मसि रे हर दह्यो काम जीयाड लो ।।२६।। इस प्रकार यशोधर रास में और भी कितने ही अच्छे एवं काव्यमय वर्णन हैं जिनसे रास के काव्यत्य में वृद्धि होती है।
लेकिन यह भी कहा जाना चाहिये कि कवि की वर्णन शैली अन्य कवियों से एकदम भिन्न है। वह प्रत्येक वर्णन में अपनी छाप छोड़ना चाहता है लेकिन इसमें वह पूरी तरह से सफल हुअा है यह सन्देह युक्त है। भाषा-कवि गुजरात का रहने वाला था और गुजरात में ही रास की रचना की
गयी थी इसलिए रास की भाषा पर गुजराती भाषा एवं शैली का पुग प्रभाव है। इन्दो का प्रयोग एवं शब्दों का चयन दोनों में गुजानी का प्रभाव थोतित है। महाकवि ब्रह्म जिनदास ने जिम शैली का प्रयोग किया था और उसी शैली को यहां कवि देवेन्द्र अपनाया है। १६वी १७वीं शताब्दि में गुजराती शैली का हिन्दी कवियों पर पूरा प्रभाव रहा ।
इसीका नमूना यशोधर रास में देखा जा सकता है। छन्द ----रास में दोहा छन्द के अतिरिक्त और भी भास छन्दों का उपयोग किया
गया है। हमें प्राज एक भास में कितने ही पद मिलेंगे साथ ही दूसरे भाम प्राणदानी भास हेर्लानी (१३), भास नारे सुझानी (१५). भास ब्रह्म गुणराजनी (१६). भास चौपई (२४) भास भमारुलीनी भास रासनी (३१), भास साहेलीनी (३६), भास वसन्त फागुगनी (४६), भास भूपाल रागनी (५३), भास भद्रबाहुनी (८१) भास पटुललाटीनी(८४) भास जीवदानी (६८) आदि भासों का छन्दोंके रूप में प्रयोग किया है। कवि