SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बाई अजितमती एवं उसके समकालीन कवि ११५ भमर बारता करुण नलके, सारस सरस सुगंत तो। कोयल नारी शबद सुणीयतु, लाजी यचन भणंत तु ॥६७।। कवि ने एक प्रोर श्मशान का जहा वीभत्स वर्णन किया है वहां उद्यान का बडा ही मनोरम वर्णन इत्रा है। इससे पता चलता है कि कवि की वर्णन शली यामान्य रूप से अच्छी थी। वीभत्स बन : चौहाथकाए उठ्या बहु धम, अर्घ दग्ध कलेवर पड्याए। ठाम ठाम ए पडया बहुत, गली गयू मांस एहां मडाए ।।२।। विकसयाए मुख दीसि दांत, तू बली ए घरणी रहवडीए । मीनालीयाए ताणे तास, माकाशे गृष लेई जाए ॥३॥ कूतरा एव लागी प्रहार, बढ़ता माहो माहि इह डहिए । वायस ए फरमें बदठ, कागिण घण कल गली रहिए 11४॥२०॥ प्राकृतिक सुन्दरला . वाडी वन हाम ठाम, कपूर कदली कोमल दिसी हेलो। नालकेर खजूर, पूग तो तरु पर ही सेहेल || ताल तमाल हे ताल,सरल सोहि समजन समाहेल । कोमल मध्य रसाल, देवदारु यादि उसमा हेल ।।६।। तज पत्र नागवेल एलची लची फले करी हेल । जायफल संवगह मेल, मग वेल छि झूमके भी हेल ||१०॥ कवि ने यशोधर गस में सूर्यास्त एवं चन्द्रोदय दोनों का वर्णन किया है। जिनके वान से प्रबन्ध काय की महत्ता में वृद्धि होती है । सूर्यास्त बान का एक उदाहरमा निम्न प्रकार है : प्रस्ताचले रे सुर पाबंतो जाणीयो। निज मीर परि रे मुकूट समो बरवायो ॥४॥ पश्चिम दिसि रे रवी प्राविह धारातही । पंखी तणा रे सोल ससि करे वानही ।।५।। निर अंतरे रे रबि घण मान पामयूं। उत्तम नेरे को एि एक सीस ननामयू ।।६।।
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy