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देवेन्द्र कवि
उमास्वामी मुनि संत समन्तभद्र भाब प्रातिलोए । प्रति चोध्या सिवकोटि कोष स्वयंभू गुणनिलोए ।।२१।। पूज्यपाद प्रसीध जिनसेन सामने चंदलोए । अनापम प्रकलंक वीर धरि बोध जीतवा भलोए ॥२२॥ मुगभद्रादि अनेक पूर्वाधारज बहु हुवाए । हो ध्याघरी भाब काम वांछित सिद्ध थवाए ।।२३।।
कवि ने प्राचायों के पश्चात् भट्टारको की परम्परा का उल्लेख किया है जिनमें भ० पद्मनन्दि. विद्यामन्दि मल्लिभूषण, लक्ष्मी चन्द्र, वीरचन्द्र, ज्ञानभुलगा प्रभाचन्द्र, वादिचन्द्र के नाम गिनाये हैं। ये सभी भट्टारक बलात्कार गण की सूरत शाखा के भट्टारक थे । इस प्रकार यशोधर रास ऐतिहासिक तथ्यों का भाग बन गया है ।
भगवान महावीर का समवसरण जब विपुलाचल पर्वत पर आया तो श्रेणिक महाराज पुरे प्रजाजनों के साथ उनकी वन्दना को गए। उनका हृदय से स्तवन किया और गौतम गणधर से यशोधर के जीवन बुत जानने की अपनी इच्छा प्रकट की इस प्रकार ऋवि ने प्रथम अधिकार काव्य की भूमिका के रूप में प्रस्तुन क्रिया है जिससे पता चलता हैकि कवि में काष्य निर्माण की विलक्षण प्रतिभा थी।
दूसरे अधिकार से नवम अधिकार तक यशोघर की जीवन कथा दी हुई है जो अत्यधिक काव्य-मय भाषा एवं शैली में लिखी गयी है। कवि के पूर्व में जितने भी यशोधर के जीवन पर काव्य, रास एवं चरित्र लिखे गये थे उनसे कवि परिचित था या नहीं इस सम्बन्ध में तो हम कोई प्रकापा नहीं डाल सकते क्योंकि स्वयं कवि ने अपने पूर्ववर्ती किसी भी कवि का नामोल्लेख नहीं किया जिन्होंने अपभ्रंश संस्कृत एवं हिन्दी में यशोधर काव्य/रास/चरित्र लिखे थे लेकिन कवि ने यशोधर
पिनकथा लिखते समय उसी परम्परा का निर्वाह किया है जो उसके पूर्ववर्ती कषियों ने किया था। लेकिन सभी प्रसंगो का वर्णन करते हए कवि ने अपनी कामग कौशल का प्रदर्शन अवश्य किया है। इससे काव्य मधुर एवं सरस बन गया है । वैये भी स्वयं कवि अपने रास को नवरस युक्त रचना कहा है। और "रास रस्यो नव रस भर यो । जैसे धाब्दों का प्रयोग किया है। यहां हम कुछ उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं :
नगर में नारी की सुन्दरता का वर्णन करते हुए कवि ने कहा है कि सुन्दरिय पर भवरे झूमते थे और जब वे उन्हें उडाती तो उनकी करधनी शब्द करती थी । उनके मधुर शब्दों को सुन कर स्वयं कोयल लज्जित हो जाती थी।