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देवेन्द्र वदि
तथा जीर्णोद्धार बनाया था । तथा प्रतिष्ठा विधान कराये थे।
मनन्त पंड्या के करजी पुत्र हुए जो अन्त्यधिक उदार स्वभाव के थे । इमको एक पुत्री पद्मावती भी जिसके पति का नाम धरसीधा था । ब्राहारणों के बीम कूलों में वह विशिष्ठ माना जाता था। धरणीधर के दो पुत्र थे जिनमें जेष्ठ पत्र विक्रम तथा कनिष्ठ पुत्र गंगाचर थे । गंगाथर जैन न्याय के विशेष ज्ञाता थे तथा सम्यकत्व से सुशोभित थे । उमे सोभाग्य से जगत से विरक्ति सो गयी जो बादमें भट्टाक दिसालकीति के पट्ट में देवेन्द्रकीनि के नाम से विख्यात हुए। जन्होंने कर्नाटक प्रदेश में जनधर्ग की बहुत प्रभावना की थी पोर जैन राजानों द्वारा पूजित हुए थे ।
विक्रम विविध प्रागमों के ज्ञाना थे इसलिए वे विक्राभट्र के नाम से विम्यात थे। महीपाल नीति उनके विद्यागुरु ग्रे । विक्रम की पत्नि का नाम अजवाई था जो शीलवती एवं गुणवती थी। देवेन्द्र उसी का पुत्र था। भगवान जिनेन्द्र देव का वह परम उपासक एवं जैन शास्त्रों का परम ज्ञाता था।
देवेन्द्र कवि थे। उन्होंने विचने ग्रन्थों की रचना की थी यह ती अभी ज्ञात नहीं हो सका है लेकिन उनकी एक मात्र रचना "यशोधर रास" का रचना काल १ धन धन जिनदास ब्रह्मबागी, सा. प्रतिबोध्या ब्राह्मण गज नो ।
यनन्स पंडया नाम भलू, सा०ा जाणे जेह ने राज ममान तो ।।५।। तीनों प्रादयो समकीत रत्न |साका प्रज्ञ जीवदया प्रतिपालतो ।
घट सर्प दीव्य करसा । कुतुसखान सभा विसानतो ॥६०।1 २ जैन धर्म तिहां थापीयो सारा व्यापीयो जस अपार तो।
बिंब प्रासाद उसार करया साo। तस सूत कउजी उदारतो ॥६॥ तस पुत्री पद्मावती ।सा०। धरणीधर तस त तो। चौबीसा ब्राह्मण कृलि सा सोहि महीमावंत तो ।।६२ सस पुत्र दोये पवित्र साo। विक्रम मंगाधर नाम तो। जनवादी विद्या तिला नसा समकित रतन सुहामनो ।। ६३। गंगाधरे नप उद्धरयो सारा भाग्य सौभाग्य समुद्र तो। बिसालवीति पाटि हवा |सा देवेन्द्रकीति सुरेन्द्रती ।।६४|| प्रकलक सूरी सींघासने ।साल। कर्णाटक देस प्रमीध तो।
जिनधर्म तीहाँ उद्धरयो ।साल। जन राजादिक पूजा कीपत्तो ।।६।। ३ विक्रम भट्ट विक्षात तो मा०n सील समकित गुण खाण तो।
तस चि पुत्र वीशारद ।साल। देवेन्द्र बासुदेव जाण तो ॥६६॥