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________________ भट्टारक महेन्द्रकीत्ति महन्द्राशि नाम वाले एक संदिदारक हो गये हैं लेकिन भट्टारक पट्टालियो के अनुसार अब तक निम्न प्रकार परिचय मिलता है :११) भट्टारक महेन्द्रकीत्ति ११) अजमेर गादी के भ० देवेन्द्रकीत्ति के शिष्य (सं० १७६६) (२) ग्रामर गादी के भ० देवेन्द्र कीशि के शिष्य (सं० १७६०) (३) , भ. देवेन्द्रकीति । द्वितीय) के शिष्य (सं० १९३६। (४) प्राचार्य महेन्द्र कीति (४) सूरत गादी के भट्टारक मल्लिभूषण के शिष्य (सं० १५७०) उक्त चार महेन्द्रकीति नाम वाले विद्वानों में से कौन मे महेन्द्र मिति प्रस्तुत पदों के रचयिता हैं । जिस गुटके मे इन पदों का संग्रह मिला है उसमें भी झाई लेखन कान्य नहीं दिया । लेकिन गुटका १७ वी अथवा १८ शताब्दि में लिपि बत हुया लगता है इसलिए प्रस्तुत महेन्द्रकीति भ. देवेन्द्रकीति {द्वितीय) के शिष्य तो नहीं हो सकते क्योंकि वे तो अभी १००वर्ष पूर्व ही हुए थे। सूरत' गादी के भट्टारक मल्लि भूपण के शिष्य प्राचार्य महेन्द्र कात्ति भी इन पदों के रचयिता नही हो सकते क्योंकि पदों की भाषा एवं शैली१६वीं शताब्दि जैसी नहीं है । अब शेष दो भट्टारक रहे एक अजमेर गादी के, दसरे हारमेर गादी के । डिग्गी नगर जिसमें प्रस्तुत गृटका संग्रहीत है वह प्रामेर गावी के भट्टारक का नगर न होकर अजमेर गादी के भट्टारक के अन्तर्गत माता था इसलिए प्रस्तुत पदों के रचियता भट्टारक महेन्द्र भट्टारक विद्यानन्द के शिष्य थे जिनका पट्टाभिषेक मंवत् १७६६ में हुआ था। संवत् १५५१ में भटारा रलकीत्ति ने अजमेर में पुनः स्वतन्त्र भट्ट रक गादी की स्थापना की थी और अपना पुन: पट्टाभिषेक महोत्सव प्रायोजित किया था। भारत रत्नीत्ति के पश्चात् विद्यानन्द (संवत् १७६६) में भोर भट्टारक
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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