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________________ १०० ४. आदि जिन गीत धनपाल कवि राग गौडी सो जिप्समरहु भावरि जहि सु चाही भवनार हो । मय दे माता उरि घरं नाभि घरां अवतार हो सो नाभि नंदनु भविक बंद तोड़ा नयरि मभारि । पंचसं धनुष प्रमाण काया विष लांछल धारि । सर्वार्थसिद्धि ये यादमा ईसाक वंशह जारिए । अजो निशु लिम गुण की खानि ॥ १ ॥ जनम चैत्र वदि नवमी को कंचनचरण शरीर हो । इन्द्र महोखे श्राइया, मेर व्हायो वीर हो । इकु मेर सिहां हयो जिवरु इंद्र नार्च बहू परे । सीसाहले विष्णु, प्राणियो माता घरे । कुमरें पर वसि लक्ष पूरब तेसटि रजु करेइ । निषेउ पायो पेखि अपछरे लोयंतीय हसरेइ ||२| श्राखातिजाहा पारणो घरि श्रेयांस नरेसहो । बरस सहस छदमस्तु भी केवल फागुण ग्यासिहो । फागुण ग्यारसी हुवा केवलु समोसरल विराजये । विषभ सेह यादि गाहरु वाणि दुदभी गाजियो । तपु लक्ष पूरव जेणिपाल्यो यह हरिहि नमसियो । मी आदि जिव चंद भवियहु धम्म मारग दंसियो ||३|| डंडक पटक पूरखा पूरा ध्यान चियारिहो । गिरि कपलासह मिठ गुणांह विचारिहो । कैलास गिरि निर्माण थानकु पठ गुण संजुलीया । जीति में जौति समाय मंठा पहि सुगृहि ति अनुजिया । कचि देल्ह नदंण सुगति मांगे धनपाल गाइया । श्री श्रादि जिरावरु नमी भवियहु तुरिय संघ मनि भाइया ||४||
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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